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________________ ११२ पष्फुल्ल-लोयण-कमलु सा चारण- मुणि कहिय जं सोयव्व-निसामणिण दहव्वहं दंसणिण फुड तहा हि नेमिनाहचरिउ [ [ ४४२ ] तयणु वियसिय- वयण - रयनिंदु [४४३] अह जिर्णिदह करिवि नवकारु पण मेपिणु गुरु- पयहं भणइ सुमइ जह - नाह निसुणसु । स- परियणु वि मह पसिय होउ किंचि समवहिय- माणसु || जेण कहाणउं कहउं हउं सणतुकुमारह धरणियल आणंद-भुवस्सु । तिलयह नर - रयणस्सु ॥ ― उत्तुंग- सुर-गिरि - सिहरससि-दिणयर-लोयणिहि चित्तगइ वि साणंदु जंपइ | कह कह कह मह वि संपइ ॥ सत्रण पसंसिज्जति । नयण वि सहलीहुति ॥ [४४४] मलय- गिरि-वण-केस - पासाए Jain Education International 2010_05 हिमगिरि - विंझ - गिरिंद-थिर- थोर-त्थण-जुयलाए । कालिंदी- सरि-सलिल-भर- रोमावलि-कलियाए ॥ रयणायर - अंवरहि निय-मंदर - गिरि-फुरियनग - नगरागर - गाम-सरि जंबु-दीवि महंति तर्हि उत्तिमंग-संपत्त-कित्तिहि । तार- सेणि- सिय-दंत-पंतिहि || [४४५ ] सुर तरंगिण - पुलिण- जहणाए पुहइ-वहुहु संजणिय - मंडणि । सेस-दीव - माहप्प- खंडण || विसय सहस्स- समिद्धि । भरह- क्खित्ति पसिद्धि ॥ For Private & Personal Use Only [ ४४२ www.jainelibrary.org
SR No.002609
Book TitleNeminahacariya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1970
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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