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पष्फुल्ल-लोयण-कमलु सा चारण- मुणि कहिय जं सोयव्व-निसामणिण दहव्वहं दंसणिण फुड
तहा हि
नेमिनाहचरिउ
[ [ ४४२ ] तयणु वियसिय- वयण - रयनिंदु
[४४३]
अह जिर्णिदह करिवि नवकारु
पण मेपिणु गुरु- पयहं
भणइ सुमइ जह - नाह निसुणसु । स- परियणु वि मह पसिय होउ किंचि समवहिय- माणसु || जेण कहाणउं कहउं हउं सणतुकुमारह धरणियल
आणंद-भुवस्सु । तिलयह नर - रयणस्सु ॥
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उत्तुंग- सुर-गिरि - सिहरससि-दिणयर-लोयणिहि
चित्तगइ वि साणंदु जंपइ | कह कह कह मह वि संपइ ॥ सत्रण पसंसिज्जति । नयण वि सहलीहुति ॥
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मलय- गिरि-वण-केस - पासाए
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हिमगिरि - विंझ - गिरिंद-थिर- थोर-त्थण-जुयलाए । कालिंदी- सरि-सलिल-भर- रोमावलि-कलियाए ॥
रयणायर - अंवरहि निय-मंदर - गिरि-फुरियनग - नगरागर - गाम-सरि जंबु-दीवि महंति तर्हि
उत्तिमंग-संपत्त-कित्तिहि । तार- सेणि- सिय-दंत-पंतिहि ||
[४४५ ]
सुर तरंगिण - पुलिण- जहणाए
पुहइ-वहुहु संजणिय - मंडणि । सेस-दीव - माहप्प- खंडण || विसय सहस्स- समिद्धि । भरह- क्खित्ति पसिद्धि ॥
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