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तड्यभवि चित्तगहयुत्तंतु
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काल-जोगिण पुण अइक्कंति निरु पाउस-काउरिसि वहल-सलिल-पिच्छलिय-महियलि । अवइण्णउ सरय-रिउ जत्थ गलिय जलयालि नह-यलि ॥ हंस-नियंसण तुच्छ-रस वियड-पुलिण-सोणीउ । नं सरि-तरुणिउ जलय-पिय- विरहिहुयाउ किसीउ ॥
जहिं य वियसिय-कुमुय सरवरह तह फुरिय-तार-यनहहं दित्त-राय-मंडल-महम्यहं । पप्फुल्लिय-कास-वण- महिहि तह य हिम-सिहरि-सिहरहं ॥ निरुवम-मित्त-पयाव-भर- दुगुणीकय-तेयस्सु । रयणिहिं दिणि व न जय-जणिण धुवु लक्खियइ विसेसु ॥
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जणिय-तिहुयण-हरिसि सरयम्मि तहिं एरिसि निय-सुहिहिं सहिउ धवलहर-उपरि संठिउ । संतेउरु चित्तगइ
पुव्व-पुरिस-कह-सवणुकंठिउ ॥ पुण्णिम-रयणि-समागमणि कुमुइणि-पिय-उदयम्मि । साहीण-प्पिययमि तरुणि- नियरि तुट्ठ-हिययम्मि ।
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भणिउ पणमिवि सुमइ-नामेण एगेण वंदिण - अहह नाह गरुय अच्छरिय-कारणु । साहेतउ धम्म-कह अज्ज निसुउ मई समणु चारणु ॥ तत्थ य उत्तिम-पुरिस-कह- अवसरि मुह-जणयस्सु । आयण्णिय अ-समाण कह एगह नर-रयणस्सु ॥ ५३९, ८. दिणि न जय.
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