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४४९ ]
तइयभवि चित्तगइवुत्तंति सणतुकुमारचरिउ
[४४६] जत्थ स्यणिहिं रयणि-रमणुदइ सलिल-पूर-संपुण्ण-लोयण | सुणिय- अत्थ-जय- पिय-विशेयण ॥
ससिकंत- रयणुल्लसियपरिवियलिय-चित्त-भर
नं निब्भर - दुह-पसर - परिपूरिय- गल-सरणीउ । रोयहिं रवि - विरहम्मि घर-चित्त-भित्ति-तरुणीउ ॥
[४४७]
जत्थ गिरिवर-तुंग-करिराय
गंड-स्थल - परिगलिरअवसारिय-खर - किरणि
दान-वारि-परिसित धरणिहिं । निवइ-निवह- सिय-छत्त-रयणिहिं || निव-कय-तोस विसेसु ।
हियइच्छिय-वियरण- चउर
न सरइ गिम्हि वि पाउसह कहमवि लोगु असेसु ॥
[४४८]
स- गुणु उवचिय-कोहलंकारु
असम-वंस- रयणायरुन्भवु ।
सुनिवेसाणंदयरु सु-पवित्तु सु-वाणियउ सुयण हियय-गउ गय- उत्रद्दवु ॥ मुत्तारयणु व विष्फुरिय- अमरावइ-सुंदेरु । इह अहेसि गयपुरु नयरु अरिहिं अखंडिय - मेरु ॥
[४४९]
तत्थ सूरु वि समिय-संतावु
वहु-दाणु विं मय- रहिउ दोसायर- खंड वि धम्ममई वि परत्थ-रुइ
वहु-माणो वि अ-माणु पिय- सिव-संगो वि अ-रु ||
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गय-पिओ वि स कलत्त-मणहरु । निच्चु कुमुय-वण-तोस- सुंदरु ॥ अ-जल-निही विसमुद्दु ।
४४६. ५. सुणिणियत्थ. ७. क. सरणीओ. ९. क. तरुणीओ.
४४८ ६. परिपुरिय.
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