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४३३
तइयभवि चित्तगइवुत्तंतु
[४३०]
ता पयंपइ चित्तगइ-कुमरु सुर-रयण नणु को णु हउं जीवियव्व-रक्खण-विहाणिण । तुह तइयहं मुकय-कय- सज्ज-तणुहु किं पुण पयत्तिण ॥ मह संजायउ तुहुँ जि पर- हेउ धम्म-लद्धीए । तइयहं गुरु-मेलावगह करणिण मुह-वुद्धीए ।
[४३१]
तह कयत्थउ हउं जि सजाउ जं अवसरि एरिसइ पत्तु अज्ज तुहुं तियस-सुंदर सुर-दंसणु महिहिं कय- जत्त अवि हु न लहंति जमियर ।। इय पडिवचि-पुरस्सरिहिं वयणिहिं दु-वि चिटुंत । पेच्छहि तत्थ-ट्ठिय-खयर- कुमर वि हरिसिज्जत ॥
[४३२]
इय कुमारह सुणिवि वुत्तंतु अवलोइवि रूव-सिरि गरुय-हरिस-रोमंच-अंचिय । सा ससि-मुहि रयणवइ पुन्छ-जम्म-कय-सुकय-संचिय ॥ संपाविय-रज्ज-स्सिरिव परमामय-सित्ति व्व । हुय असमाण-सरीर-पह पुण्णिम-ससि-मुत्ति व्व ॥
[४३३] .. अहह कटकट पत्त-संजोगु वपु निउणउ को-वि विहि मिहुणयस्स निउंछणउं किज्जइ इय भणिरइ खयर-नर- नारि-नियरि कुमरस्सु दिज्जइ । सा तणुयंगी रयणवइ तयणु गरुय-रिद्धीए । काराविउ वीवाहु खयरिंदिण दिण-सुद्धीए । ४३३. २. क. The second letter is illegible.
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