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नेमिनाहचरिउ
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[४२६] समिइ-समियहं गुत्ति-गुत्ताह उज्जुत्तह तव-चरणि संजमम्मि उवउत्त-चित्तहं । पंचासव-विरइयहं छसु जयाहं पसरंत-सत्तहं ॥ हउं निग्गंथहं मुणिवरहं पय-पउमई पणमेमि । जह पुणरवि भव-भावियई विविह-दुहइं न लहेमि ॥
[४२७] इय विचिंतिरु सुद्ध-परिणाम मरिऊण सु राय-रिसि तियस-भवणि पंचमि पहुत्तउ । पउमो वि हु मुणि-हणण- जणिय-पाव-भरु दुट्ठ-चित्तउ ॥ परियडमाणुज्जाण-वणि कसिणाहिण संदछ । सत्तम-नरय-महिहिं मरिवि निय-दुक्कएण पविदछु ।
[४२८] तयणु अवहिण मुणिय-निय-पुव्वभव-वइयरु सुर-नियर- विहिय-विविह-पडिवत्ति-वित्थरु । निय-परियण-परियरिउ सरिवि पुव्व-भव-नेह-वइयरु ।। वीर-सिरोमणि चित्तगइ तुह पुरओ म्हि पहुत्तु । सो हउं तियसु सुमितु इय कहिउ तुह स-वुत्तंतु ॥
[४२९] इय भणंतु वि करिवि पुचिल्लु सु सुमित्त-नराहिवइ- रूवु पडि वि चित्तगइ-चलणिहिं । साणंदु समुल्लवइ तियसु असम-कय-विणय-वयणिहि ।। जइ तइयहं हउं नर-रयण तइं रक्खिउ न हवेज्ज । ता कह मह चारित्तु तह सुर-सिरि संपज्जेज्ज ॥
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