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तइयभवि चित्तगइवुत्तंतु
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[४१४] तई पहुत्तइ नियय-टाणम्मि विहरंतु सु राय-रिसि सह गुरूहिं मुणि-किरिय-तप्परु । पाविय-जिण-समय-निहि अंतरंग-रिउ-दलण-मुग्गरु ॥ अणुजाणाविवि नियय-गुरु तियस-सिहरि-थिर-चित्तु । समय-विहिण अणुकमिण पडिवज्जइ एगागित्तु ॥
चिरु वसुंधर-वलइ विहरंतु संपत्तु काल-क्कमिण मगह-विसय-अंतिमह नयरह । एगस्सु सुसाण-वणि जं च सरिसु जम-भवण-अजिरह ॥ कत्थ वि मंसासण-भमिर- भीम-महासिव-सह । कत्थ वि भूय-पिसाय-सय- वेयालेहिं रउ ॥
[४१६] कह वि डब्भिर-मयग-संकिण्णधरणीयल कह वि मय- सगसगेंत-किमि-जाल-पिच्छलु। कत्थ वि नहि परिभमिर- उलय-कंकु जम-य-वच्छलु ॥ साइणि-फेक्कारक-विहिय- भुवण-क्खोहु कहिंचि । तम्मि समग्गह जणह पयडिय-संसार-पवंचि ॥
[४१७] ठिउ महा-मुणि मेरु-थिर-चित्तु वग्धारिय-कर-जुयलु पुत्र-पुरिस-कय-काउसग्गिण । एत्तो य सुसाण-वणि तम्मि चेव हय-विहि-निओइण ॥ पडिवक्खिय-नरवइ-गहिय- गिह-गय-सयल-समिद्धि । नीसे सेण वि परियणिण परिचत्तउ दुब्बुद्धि ॥ ४१६. ३. Illegible in क.
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