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नैमिनाहचरिउ
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अह पयंपइ तियसु - सिरि-सूरतेयंगय इहु न हउं तुज्झ पुरउ पुच्छेमि संपइ । ता साहसु पुव्व-भव-जणिउ किं-पि अह कुमरु जंपइ ॥ जइ एवं ता सुर-रयण तं चिय मह पसिऊण । कोऊहलु पूरसु सयलु निय-वइयरु कहिऊण ॥
तयणु पभणइ तियसु पसरंतमुह-ससहरु खयर-नर- नारि-नियर-मण-जणिय-विम्हउ । किं साहउं नर-रयण चरिय-विजिय-जय पुरउ तुम्हउ ॥ तह वि कहिज्जउ को-वि इह लेसिण निय-वुत्तंतु । इय एहु अवहिय-मण-पसर होहि वि खणु निसुणंतु ॥
[४१२] तई सुमित्तह निवह लहु भइणि रण-रंग-मंडवि हढिण कमल-कुमर-हत्थह मुयाविवि । आणं दिय-तद्दइय- वधु-सयण निय-ठाणि ठाविवि ॥ तयणु सुणेविणु रण-महिहि निव-रिउ-भड-संघाउ । निवइ सुमित्तु झडत्ति-हुय- गुरु-संसार-विराउ ॥
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तुह समक्खु वि सयलु निय-वग्गु कह कह वि अणुण्णविवि करिवि सुत्थु रज्जह समग्गह । सक्कारिवि देव-गुरु गंतु पुरउ सूरिहि उदग्गह ॥ तम्मुह-जलहर-संभविय- वयणामय-संसित्तु । सुगइ-नियंविणि-संग-सुह- ऊसुगु घेत्तु चरित्तु ॥ १०८. १. सज्जु. ४०९. ३. क. तियसमिद्धि.
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