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४०९ ]
तइयभवि चित्तगवुत्तंतु
[४०६ ] एत्थ - अंतरि फुरिअ - तणु-कंति
उज्जोइय दिहि-विवरु
वहु- सुर- यण- परियरिउ तियस-विसेसु चिरोवचिय- सुकय- प्पसर- पवित्तु । पुणु पुणु पणमइ कुमर-पय तोस - परव्वस-चित्तु ॥
रइय- असम-सिंगार-सुंदरु । उत्तरेवि नहयलह मणहरु !
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[४०७]
अह चमक्किय-चित्ति नीसेस
खयराहिव - कुमर-कुलि दलिय दप्पि पडिवक्ख-मंडलि । tras हिं तरुणि-जणिण दिज्जंत-मंगलि ॥ ताडिज्जतिहिं दुंदुहिहि जय जय रवि उघुट्ठि | तम्मि अणंगस्सीह - खयरेसरि निरु संतुट्ठि ॥
[४०८] भणिउ तियसिण
कुमर मा सज्ज
किं सूरतेयंगरुह पुरिस- रयण असरण - सरण्णय | पुव्वज्जिय-सुकय-वस- हय अरिट्ठ पसरिय- करुण्णय ॥ सारय- रयणीयर - विमल गुण - रयणोह - निहाण । मं उवलक्खसि चित्तगइ तुहुं सुगहिय-अभिहाण ॥
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[४०९]
तयणु कुमरिण भणिउ साणंदु
पसरत-य-भहिय
को न मुणइ इंद-समु न हि दप्पणिण कर-द्वियउ कंकणु अहव कि किण-विपयासियउ दिणयरु
निय समिद्धि- परिविजिय- तिहुयण । तुब्भि तियस- कल्लाण- भायण ॥ जोयइ कोइ । पयडी होइ ॥
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