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४०१
तइयभवि चित्तगइवुत्तंतु
[३९८]
तयणु – दुद्धरु ताव सुर-सेलु ता दुत्तरु रयण-निहि ताउ गरुय भावइ वसुंधर । ता विउलु नहंगणु वि जाव पउर-सोडीर-सुंदर ॥ अब्भुवगमर्हि न सप्पुरिस जीयह पणु मिल्लेवि । इय वहु-वयणिहिं नियय-जणु वोहिवि संचल्लेवि ॥
[३९९]
लहु सयंवर-मंडवह मज्झि संपत्तउ चित्तगइ पवर-सउण-उवइह-सिद्धिउ । जा ताव पुव्वागइहिं भणिउ खयर-कुमरिहिं कु-बुद्धिउ ॥ नणु को इहु खयरंगरुहु जो तिहुयणह अ-गेज्झि । लहुईहोहिइ उज्जमिरु असिहि खयर-गण-मज्झि ॥
[४००]
जेम्व दम्मइ जणिण करि-राउ नहि तेम्ब पंचाणणु वि न य नइ ब्व जलहि वि तरिज्जइ । गुड-पिंड व न य किण-वि तुलहं धरिवि सुर-गिरि तुलिज्जा ॥ किं जिम्ब चबिज्जहिं चणय तिम्ब मरियई खजंति । अन्न ति केसर केसरिहि जिहि गय भेसिज्जति ॥
[४०१]
इय मुणेविणु मुयसु असि-रयणगहण-ग्गहु खयर-सुय मा हवेसु सोयब्बु लोयहं । इय निसुणि वि चित्तगइ भणइ पुरउ खयराहं एयहं ॥ विहि विनडउ पीडंतु गह पुज्जउ दुज्जण-आस । हउँ पुणु गेण्हिसु असि-रयणु जहि सउ तहिं पंचास ॥ ३९९. ७. क. तिहुयण.
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