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३९३]
तइयभवि चित्तगइवुत्तंतु
[३९०] गुरुय-भत्तिण भरिउ पणिवइउ हरिभद्द-सूरि-त्थुणिउ ति-जय-तरणि पणमंत-वच्छलु । इहु जिणवरु पसिय मह हणउ सयलु भव-वासु पिच्छल्लु ॥ नहि उदयंतइ सहस-करि पीडइ जडिम जयम्मि । कप्प-तरुम्मि कि इच्छियई न हवहिं जण-हिययम्मि ।
[३९१] इय थुणेविणु जाव पणमेइ पय-पंकय जय-पहुहु सूरतेय-सुउ पुलय-अंचिउ । ता जय-जय-पुव्वु नह-यलह गुरुय-तम्भत्ति-संचिउ ॥ निरुवम-परिमल-मंसलिउ कुसुम-वरिसु परिमुक्कु । तियस-विसेसिण चित्तगइ कुमरस्सुपरि अ-चुक्कु ॥
[३९२]
एत्थ-अंतरि गयणि तियसेहि जिण-मंदिरि नहयरिहिं गरुय-हरिस-वियसंत-वयणिहिं । समगाहय-मंगलिय- तूर-रविण वहिरिय-दियंतिहिं । जंपिउ फुरियाणंद-जल- पयडिय-अणुरत्तीए । अहह अहह जिणवरु थुणिउ चित्तगइण भत्तीए ॥
[३९३] अह अणंगस्सीह-खयरिंदआइडिहिं तत्थ लहु खयरनाह-कुमरिहिं पहुत्तिहिं । सलत्तउ चित्तगइ- कुमरु विउस-वयणिहिं विचित्तिहि ॥ सो वि सयंवर-मंडवह वइयरु कहिउ असेसु । सूरतेय-नंदणु तयणु विम्हिउ मणिण निमेसु ॥
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