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नेमिनाहचरिउ
[३८६
[३८६]
अहह तिहुयण-परम-कारुणिय लद्धम्मि वि तई पहुई पेच्छ पेच्छ हउँ कह कयत्थिउ । इह अंतर-रिउ-निविहिं पुणु वि पुणु वि भवि भवि गलत्थिउ । पाडिउ कुडिल-कसाय-वण-गहणि करुणु विलवंतु । पहरिज्जंतउ दुज्जणिहिं सुअणिहि सोइज्जंतु ॥
[३८७]
जणय-वंधव-सयण-मुहि-विहवववएसिण मोहिउण धम्म-कम्म-कवएण विमुक्कउ । परिसल्लिउ कह कह न मोह-सढिण निय-कज्ज-चुक्कउ ॥ इय परिभाविवि तह कहवि कुणसु नमंत-सरण्ण । जह न हणइ मई मोह-रिउ जिण निरुवम-कारुण्ण ॥
[३८८]
रज्जु पंजरु विसु विसय-सुक्खु पिय-संगु विओग-फल देइ दुक्ख-दंदोलि जणउ वि । उवतावइ सोयरु वि अवगरेइ संसारि तणउ वि ॥ इय तर्हि कह विन रमइ मणु मज्झ भुवण-दिण-इंद । तो निरुबद्दवु किं-पि पउ वियरसु पसिय जिर्णिद ॥
[३८९]
नमिर-मुरवर-थुणिय-पय-पउम तुह संथवि भुवण-रवि कउणु एहु विष्फुरिय-तम-भरु । न हि केसरि-गम्मि करि- करड-दलणि उज्जमइ वानरु ॥ अहव स-पहु-वहु-मन्नियउ जणु किं जं न करेइ । हरिणु वि ससि-उच्छंगि ठिउ भुवणोवरि विलसेइ ॥ ३८६. ५. क. भतरिउ ८. क. दुज्जणिहि. ३८९. ३. क. कउण. ७. क. जन्न,
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