________________
३८५]
तयभवि चित्तगवुत्तंतु
[३८२] कुडिल - कुंतल विउल-भालयल
सरलायय- नयण-दलससिकंत - कवोल सियपउम-दलारुण-अहर-दल विलसिर-तिवलि-तरंग |
जय विसाल- उत्तुंग - नासिय । दंत-पंति महु- महुर भासिय ॥
अंसत्थल घोलिर-सवण
समुचिय-सिव- वहु-संग ॥
[३८३]
निहय- रिउ -कुल-नियर-भुय-दंड
वच्छयल-ललंत - जय- लच्छि गहिरतर - नाहि-मंडल | आरोह- वित्थर - विजिय- गिरि-नियंव दढ - चल - अखंडल || सीह-किसोर - तुरंग- सुरआउह - संनिह-मज्झ । सिवपुर- तोरण- थंभ उरु राय - दोस - असज्झ ||
[३८४]
फुरिय-दिणयर-किरण- नह-पंति
विमलंगुलि-दल- कलिय
निक्कारण- कारुणिय
झाइज्जसि जेण अणुदिणु वि पुलयंचिय- अंगेण ।
सो मुच्चइ गुरु भएण इव
चउ - गइ भव-संगेण ॥
Jain Education International 2010_05
परिसेविय-पय- पउम दुरुज्झिय-सयल-भवगुण- रयणायर विउल-पयउदयाहिल सिरु अणुसरइ
३८४. ४. क. निक्कारण. ३८५. ७. सदेण संकल्लोल,
१३
[३८५]
भुवण- वच्छल भविय- भमर-उल
चलण-कमल तइलोय - सामिय । जय - सरण सिव-नयर - गामिय ॥
स- भुव-तरिय संसार- सायर | भाव सिद्धि-वहु-विहिय- आयर || सद्देसण- कल्लोल । कु न तई संजम-लोल ॥
For Private & Personal Use Only
९७
www.jainelibrary.org