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नेमिनाहचरिउ
[३७८]
एत्थ-अंतरि महिहिं सयलाई जिण-नायग-चेइयइं चंदिऊण निच्चई नमंसिरु । संपत्तु सिद्धाययणि सूरतेय-सुउ हरिस-विलसिरु ॥ समय-विहिण जिण-नाह-पडिमाहं अवग्गहि गंतु । मुद्ध-उझाण-कुढारइण पाव-वणइं निहणंतु ॥
[३७९]
वउल-मालइ-तिलय-वियइल्लमंदार-हरि-चंदणय- वन्न-जूहि-जासूण-कुसुमिहिं । विरएविणु पूय तह दिव्व-पट्ट-चीणंसु-पमुहिहि ॥ उत्तिम-वत्थिहिं तित्थयर- पडिमउ सक्कारेवि । गरुय-पयासिय-भक्ति-भरु धूवुक्खेवु करेवि ॥
[३८०]
तयणु तक्खणि मिलिय-बहु-सिद्धगंधव्व-खयराहिवइ- निवह-जणिय-आणंद-सुंदरु। कारावइ पेच्छणउं असम-सग्ग-अपवग्ग-मुहयरु ॥ अह मन्नंतउ चित्तगइ कय-किच्चउं अप्पाणु । थुणइ जिणेसरु गहिर-सरु पसरिय-गुरु-बहु-माणु ॥
[३८१]
सामि दिट्ठउ कप्पतरु अज्जु उवलद्ध चिंतामणि व काम-घेणु पाविय कयत्थिण । जं भुवण-पियामहह तुज्झ महिय पय मई स-हत्थिण ॥ कंचण-वुहि अहन्न-धरि न हि संभावइ कोइ । गुरुयण-चलणहं सेव कय कह वि न निष्फल होई॥
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