________________
नेमिनाहचरिउ
[३७०
[३७०]
तयणु अ-मुणिवि नियय-माहप्पु अ-निरिक्खिवि नियय-वलु अप्प-परहं अंतरु अ-चिंतिवि । निसुणेविणु कंचुगिहि क्यणु रयणवइ-रूवु पेक्खिवि ॥ आऊराविय-संख-सय ताडाविय-जय-ढक्क। चलिय ति असि-रयणह समुह परमद्धि वि के-वि थक्क ।
[३७१]
चित्त-लिहिय व लेप्पमइय व्व पाहाणुविकण्ण इव हढिण हरिय-सव्वस्स दुहिय व । संपाविय-मुच्छ इव फुरिय-गरुय-मय-मोह-निहय व ॥ सव्यत्तो वि ह परिगलिय- कज्जाकज्ज-वियार। कि-वि असि-रयण-पहंतरि वि निवडिय नीसाहार ॥
[३७२]
के-वि पुणु दढ-मंत-कय-कवयवहु-भेय-विज्जाहिगम विहिय-गव्य कह कह वि खग्गह। सविहम्मि पहुत्त गुरु- जणिय-चोज्ज-निय-खयर-वग्गह ॥ जाव य लग्ग गहेउ असि- रयणु ताव सहसत्ति । गिरिहि सिहर असि-पडिरविण तुहिउ लग्ग तडत्ति ॥ अवि य
[३७३]
विसइ बमुहहं बड-परोहु व्व जलयालि व धडहडइ गयणि विज्जु-पुंजु व झलक्कइ । फुक्कारइ विसहरु व सत्तु-हियइ उवलु व धवक्कइ ॥ उप्पयंतु महियलि भुवण- भय-जणणेक्क-करालु । कसु कसु खयरह मणु खणिण न क्खोहइ करवालु ॥ ३७१. ८. क. असिमसिरयणहंतरिवि.
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org