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तइयभवि चित्तगइवुत्तंतु
[३६६] एस उण सिरि-अच्चिमालिस्सु खयरिंदह अंगरुहु फुरिय-गरुय-माहप्प-वित्थरु । वहु-मंत-तंतोसहिहिं पत्त-कित्ति-धवलिय-दियंतरु ॥ निय-लायण्ण-पहाव-हय- माणिणि-माण-मर? । किरणवेग-नामिण पयडु दुज्जण-दलण-घरटु ॥
एस उण ससि-चयणि दाणेण परिनिज्जिय-गंधकरि फुरिय-तेय-अहरिय-दिवायरु । गंभीरिम रयण-निहि थिरिम वसुह नय-विहि-कयायरु ॥ वर-माल-क्खिवणिण सुयणु संभावसु गुण-धामु । विज्जाहर-पहु रवि-किरण- नंदणु रविरह-नामु ॥
[३६८] इय समग्गि वि अंव-धाईए पडिगोत्तुवित्तणिण चंद-कुंद-सिय-कित्ति-कहणिण । उवदंसिय-खयर-पहु- तणय न उण कुमरीए दिट्टिण ॥ संभाविउ एगो वि तहं मज्झि खयर-कुमराह । ता सयलु वि सो खयर-गणु खुहिउ न माइ धराहं ॥
एत्थ-अंतरि स-पहु-वयणेण एगयरिण कंचुगिण भणिउ पुरउ खयरिंद-कुमरहं । इगु मज्झह तुम्हह हर- हास-कास-सिय-कित्ति-पसरहं ॥ कोवि-हु पयडिय-नियय वलु लक्खण-सय-धरणीए । हवउ गहेविणु असि-रयणु पिययमु रयणवईए॥
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