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तइयभवि चित्तगइवुत्तंतु
[३५८] विमल-बहुविह-रयण-तोरणिहि सोहंत-असेस-दिसि स-सिरि-विजिय-सुरराय-मंदिरु । वहु-भंग-विभत्ति-जय- जंतु-जाय-आणंद-संदिरु ॥ मुत्तावलि-रयणावलिहिं मालिय-सयल-पएसु । तियस-महदुम-कुसम-सरि-विरइय-सोह-विसेसु ॥
[३५९] वरु सयंवर-मंडवु करेवि सचिविंदु साहइ पहुहु ता अणंगसीहिण खणद्धिण । निय लेह पेसिवि सयल खयर-कुमर वाहरिय हरिसिण ॥ ति वि तल्लेहुवदंसणिण स-वल-भरिण पसरंत । रयणवइहि लोलुय-हियय तहिं पहुत्त तूरंत ॥
[३६०]
ता अणुक्कमु खयर-नाहस्सु उवएसिण कय-सयल- नियय-नियय-कायव्य-वित्थर । आवासिहि गंतु ठिय खयर-कुमर गुरु-हरिस-निब्भर ॥ अह सह सयण-मणोरहिहि लग्ग-दिणम्मि पहुत्ति । तम्मि य खयर-कुमार-गणि वियसिय-मुह-सयवत्ति ।।
ठविवि मणिमय-पीढ-उवरिम्मि खयरिंदिण निय-करिहिं करिवि पूय सम्माणु पयडिवि । सुर-वियरिउ फुरिय-गिरि- गुरु-पयावु असि-रयणु मेल्लिवि ॥ मज्झि सयंवर-मंडवह तयणु कुमरि संलत्त । एहु पूयसु जह लहु हवइ पिययम-पत्ति निरुत्त ॥ ३५८. ३. क. विजय. ३५९. ८. क. हिय. ३६१. ९, क. पियय.
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