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(३९-२) दसासुयक्खंधं कप्पसूर्य (बारसासूत्र)
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जलंते, तस्स य करपहरापरद्धंमि अंधयारे बालायवकुंकुमेणं खचिअव्व जीवलोए, सयणिज्जाओ अब्भुढेइ॥६०|| अब्भुट्टित्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता अट्टणसालं अणुपविसइ अणुपविसित्ता अणेगवाया-मजोग-वग्गण-वामद्दण-मल्लजुद्ध-करणेहिं संते परिसंते सयपाग-सहस्सपागेहिं सुगंध-वरतिल्लमाइएहिं पीणणिज्जेहिं दीवणिज्जेहिं मयणिज्जेहिं विहणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहिं सव्विंदियगाय-पल्हाय-णिज्जेहिं अब्भंगिए समाणे तिल्ल-चम्मंसि निउणेहिं पडिपुण्ण पाणिपाय-सुकुमालकोमल-तलेहिं अब्भंगण-परिमणद्दणुव्व-लण-करणं-गुणनिम्माएहिं छेएहिं दक्खेहिं पढेहिं कुसलेहि मेहावीहिं जिअ-परिस्समेहिं पुरिसेहिं अट्ठिसुहाए मंससुहाए तयासुहाए रोमसुहाए चउव्विहाए सुहपरिकम्मणाए संवाहणाए संवाहिए समाणे अवगय-परिस्समे अट्टणसालाओ पडिनिक्खमइ ॥६१|| पडिनिक्खमित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता समुत्तजालाकुलाभिरामे विचित्त-मणि-रयण-कुट्टिमतले रमणिज्जे ण्हाणमंडवंसिनाणामणि-रयण-भत्तिचित्तंसिण्हाणपीढंसि सुहनिसण्णे पुफ्फोदएहि अगंधोदएहि अ उण्होदएहि
अ सुहोदएहि अ सुद्धोदएहि अ कल्लाण-करण-पवर-मज्जणविहीए मज्जिए, तत्थ कोउअसएहिं बहुविहेहिं कल्लाणग-पवर-मज्जणविहीए मज्जिए तत्थ कोउ 4. असाघहिं बहुविहेहिं कल्लाणग-पवर-मज्जवणावसाणे पम्हल-सुकुमाल-गंधकासाइअलूहिअंगे अहय-सुमहग्ध-दूसरयण-सुसंवुडे सरस-सुरभि-गोसीसचंदणाणु
लित्तगत्तेसु-इमाला-वण्णग-विलेवणे आविद्धमणि-सुवण्णणे कप्पिय-हारद्धहारतिसरय-पालब-पलंबमाणकसडिसुत्त-सुकयसोभे पिणद्धगेविज्जे अंगुलिज्ज गललिय कयाभरणे वरकडगतुडिअर्थभिअभुए अहिअरुव-सस्सिरीए कुंडल-उज्जोइआणणे मउडदित्तसिरए हारोत्थयसुकयरइअवच्छे मुद्दिआपिंगलंगुलीए पालंबपलंबमाणसुकय-पडउत्तरिज्जे नाणामणि-कणगरयण-विमलम-हरिह-निउउरोवचिअ-मिसिमिसिंत-विरइअ-सुसिलिट्ठ-विसिट्ठलट्ठ-आविद्धवीखलए, किं बहुणा ? कप्परुक्खए विव अलंकिअ-विभूसिए नरिंदे, सकोरटि-मल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्ज-माणेणं सेअवर-चामराहिं उधुव्व-माणीहिं मंगल्ल-जयसद्द-कयालोए अणेगगण-नायग दंडनायग-राईसर-तलवर-माडंबिअ-कोडुबिअ-मंति-महामंति-गण-गदोवारिय-अम-च्चचेड-पीढमद्द-नगरनिगम-सिट्ठि-सेणावइ-सत्थवाह-दूअसंधिवालसद्धिं संपरिबुडे धवल-महामेहनिग्गए इव गहगण-दिप्पंत-रिक्ख-तारागणाण मज्झे ससिव्व पिअदंसणे नरवई नरिंदे नखसहे नरसीहे अब्भहिअरायतेअ-लच्छीए दिप्पमाणे मज्जणधराओ पडिनिक्खमइ॥६२|| मज्जणधराओ पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिआ उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणंसि पुरत्थाभिमुहे निसीअइ, निसीइत्ता अप्पणो उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए अट्ठ भद्दासणाई सेअवत्थ-पच्चुत्थुयाई सिद्धत्थय कयमंगलोवयाराइं रयावेइ, रयावित्ता अप्पणो अदूरसामंते नाणामणि-रयण-मंडिअं अहिअपिच्छणिज्ज महग्घ-वर-पट्टणुग्गयं सहपट्ट-भत्ति-सयचित्त-ताणं ईहामिअ उसभ-तुरगनरमगरविहग-वालग-किन्नर-रुरु-सरभ-चमर-कुंजर-वणलय-पउमलय-भत्तिचित्तं अभितरिअं जवणिअं अंछावेइ, अंछावेत्ता नाणामणि-रयण-भत्तिचित्तं अत्थरय-मिउ-मसूर-गुत्थयं सेअवस्थपच्चुत्थुअंसुमउअं अंगसुहफरिसं विसिट्ठ तिसलाए खत्तिआणीए भद्दासणं रयावेइ॥६३|| रयावित्ता कोडुबिअ-पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी ॥६४॥ खिप्पामेव भो देवाणुप्पिआ ! अटुंग-महानिमित्त-सुत्तत्थ-धारए विविह-सत्थ-कुसले सुविण-लक्खणपाढए सद्दावेह ।। तए णं ते कोडुंबिअ-पुरिसा सिद्धत्थेणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हठ्ठतुट्ठ जाव-हियया करयल जाव पडिसुणंति ॥६५॥ पडिसुणित्ता सिद्धत्थस्स खत्तियस्स अंतिआओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता कुंडपुरं नगरं मज्झमज्झेणं जेणेव सुविण-लक्खणपाढगाणं गेहाइं तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सुविण-लक्खण-पाढए सद्दाविति ॥६६।। तएणं ते सुविण-लक्खण-पाढया सिद्धत्थस्स खत्तिअस्स कोडुबिअ-पुरिसेहिं सहाविआ समाणा हद्वतुट्ठ जाव हयहियया ण्हाया कयबलिकम्मा के कयकोउअ-मंगल-पायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाइं मंगल्लाई वत्थाई पवराइं परिहिआ अप्प-महग्घा-भरणालंकिय-सरीरा सिद्धत्थयहरिआलिआ-कय-मंगल-मुद्धाणासएहिं २ गेहेहितो निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता खत्तियकुंडग्गामं नगरं मज्झं-मज्झेणं जेणेव सिद्धत्थस्स रण्णो भवण-वर-वडिंसग-पडिदुवारे तेणेव उवागच्छंति,
उवागच्छित्ता भवण-वर-वडिंसग-पडिदुवारे एगयओ मिलंति, मिलित्ता जेणेव बाहिरिआ उवट्ठाणसाला जेणेव सिद्धत्थे खत्तिए तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता MO:55555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा- १५५०5555555555555555555555555GORK
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