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________________ सखरो समवडि | समापै कठिन शब्द-कोष ४५७ ४१३ अच्छी संथारउ २०४,३१६ संस्तारक सखाइ १६० मित्रपना, संथुणिउ ५ संस्तव किया मित्रता, सहा सन्नाणह २८ सदज्ञानसे यक समकित ४९,१३०,२२५,२८० सगलौ ४०६ सारा सग्गहि,सग्गि ४,२६,३६ स्वर्ग में सम्यक्त्व संखेवि समग्ग २१ समग्र .. ५१ संक्षेपसे संघव समगह ३१ श्रमण १३,१८ संघपत संघात १४२ साथमें समरणी १५९ माला सवांण ३०१ बाज? समर्य ५६ याद किया संजम ६ संयम ९४,१३४ समान : ३६८ संयुक्त, सहित समवाय संजुत्तु ५६ समूह संश ४१२ देता है ३९१ सन्ध्या संठविउ ३८७ संस्थापित समिद्धह ३६७ समृद्ध किया समोभ्रम २५९ भ्रम संठाविड ३९५ " समोसरे ३३८ समवसरे,पधारे संठित १ संस्थित सम्मुखइ २०४ सामने संठियठ संपत्तु ३८५ पहुंचा संतुट्ठ १ संतुष्ट संपय २५ संप्रति सट्ट वि ३७१ सुष्टु, श्रेष्ट संवेग ११६ संसारसे उदासतर . १५४,१५६ सतरह सीनता. वैराग्या सतरभेदी २७५ , प्रकारकी मोक्षाभिलाषा, ३७० सत्व संवेगी १७७,३२५ सवेगवाले सत्य ३६८ सार्थ, संघ | सयल ६,१३४,३३२,३५८ सकल सदीव . ३२९ हमेशा, सदैव सग्णा २५९ शरण सद्दहणा. ११४ श्रद्धा . सरणाइ ३३१,३५२ वाद्य विशेष सदहे २६.. ६ को सरभरि १४३ बराबरी सहि . . . २ शब्दसे ३९४ स्वर सनूर, सनूरी ६८, ८९ दीप्तमान, | सरे. ३८९ स्वरसे सुरूप, सुन्दर | सलहिउ १३ प्रशंसित . सतु सहि Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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