________________
ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह ४ :-उज्जैनीके स्तम्भमेंसे ध्यानबलसे विद्यामन्त्रकी पुस्तक ग्रहण
की, उसमेंसे स्वर्णसिद्धि आदि विद्यायें ग्रहण कर चित्तौड़के भंडारमें स्थापित की। उस पुस्तकको हेमचन्द्राचार्य के कथनसे कुमारपाल नृपतिने मंगाई, पर उसे खोलनेका ( ग्रन्थके ऊपर ) निषेध लिखा हुआ होनेपर भी हेमचन्द्राचार्यकी बहिन-साध्वीके पुस्तकके बन्डलको खोलनेपर वे नेत्रहीन हो गयीं और पुस्तक उड़कर जेसलमेरके भण्डारमें जा गिरी। वहां चोसठ योग
नियां उनकी रक्षा करती हैं। ५:-प्रतिक्रमणके समय पड़ती हुई बिजलीको रोक दी। ६ :-विक्रमपुरमें मृगीके उपद्रव होनेपर 'तंजयउ' स्त्रोत्र रचकर
शांति की। वहां महेश्वरी, डागा, लुणिया आदि १५०० श्रावकोंको प्रतिबोध दिया।
इस प्रकार गुरुजीकी प्रशंसा सुनकर उनसे यशोधरने राज्य रक्षण की प्रार्थना की। गुरुजीने उपरोक्त सिंहोजीको वहांका राज्य दिलवाकर उस राज्यकी रक्षा की, तभीसे राठोड़, खरतर आचार्यों को अपना गुरु मानने लगे।
जिनचन्द्र सूरि
__ सं० ११६७ भाद्र शुक्ला ८ को रासलकी पत्नी देहल्णदेकी कुक्षिसे आप जन्मे थे । सं० १२०३ फाल्गुन शुक्ला ह को ६ वर्षकी लघुवयमें ही जिनदत्त सूरिके समीप दीक्षा ग्रहण की। सं० १२०५ वैशाख शुक्ला षष्ठीको विक्रमपुरमें श्री जिनदत्त सूरजीने अपने पढ़ें
Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org