________________
॥ श्रीमद् ज्ञानसार अवदात दोहा ॥
वार ॥ ३ ॥
उदैचन्द्र सुत ऊपज्यौ, लीयो विधाता लोच । देवनरायण दाखवं, को अजब गति आलोच ॥ १ ॥ अढारै इकडोतरै, छाक मैल री छांड । मात जीवण दे जनमीया, सांड जात नर सांड || २ || वास जेगले पैंत सुं, दोवां जनम उदार । वरस बार बौली गया, बारौतरै री श्री जिनलाभ सूरिसरू, भट्टारक भूपाल । बीकानेरज बंदोयै, चढ़ती गति चौसाल ॥ ४ ॥ सीस वडाला वडमती, वडभागी वडरीत । रायचन्द राजा ऋषि, प्रगट्यो पुण्य प्रवीत ॥ ५ ॥ तिण पाटै इण कलि तपै, जांण्यौ थो निरहेज | वायै डम्बर वोखरै, तरुण पसारै तेज ॥ ६ ॥ प्रणमें सूरतसिंह पय, मिल्यो जनम से मींत । ज्ञानसार संसार में, आखै लोक अदीत ॥ ७ ॥ सीस सदासुख साहरै, चलि आवै चौराज । श्रवणे तौ में सांभल्यो, आंगर दीठौ आज ॥ ८ ॥ बाबाजी वायक अखै, अखै राठौडौ राज । खरतर गुर सगला अखै, रतन अखै महाराज ॥ ६ ॥
२८
Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org