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________________ श्री जिनचन्द्रसूरि गीतम् ४३१ अवसर जांणी आपियो रे, सहर्ष आपणो पाट । श्रीसंघ 'जेसलमेरु' में रे, कोधो अति गहगाट । कीधो अति गहगाटो रे वंडो, 'श्रीजिणचन्दसूरि' गच्छ चंदो। ___ कुमति ना मत दूरे निकन्दो, मेरुतणी परे निंदो । ५। सोभागी जंबू जिसो रे, रूपे 'वयरकुमार'। शोले थूलभद्र सारिखो रे, लब्धे गोयम अवतारो। लबधे 'गोयम' अवतारो रे ऐसो, दूणकी हे केसौ........ । सूरके आगे खजुओ जेसौ, इण आगे सभ कुमती तैसो ।६। "श्रीजिनेश्वर सूरि' ने रे, पाट प्रगट भाण । 'बाफणा' गोत्र कला निलो, गच्छ 'वेगड़ सुलताण । गच्छ 'वेगड़' सुलताण रे साचो, ओर कुमति कहावे काचो । ... 'महिमसमुद्र' गुरु चरणे राचो, कवियण इम गुरुना गुण वांचो । _नं. २ राग गौडी भावननी 'परम संवेगो परगडो रे, चावो जस चिहुं खंडो रे । चीतारे वडा छत्रपती रे, नाम जपे नवखंडो रे। कहो किम वीसरे, ते गुरु जुगपरधानो रे । 'जिनचन्द सूरिजी' साधु सिरोमणि जाणो रे ।। पंच महाबत पालता रे, करता उग्र विहार । भविक जीव प्रतिवोधता रे, कूड न कपट लिगारो रे ।का। सूधो धरम सुणावता रे, अविरल वाण वखाण । मेघतणी परे गाजतो रे, साचा चतुर सुजाणो रे ।का। सुधा संशय भांजता रे, प्रवचन वचन प्रमाण । कुमति मति कु खंडता रे, धरता नित धर्मध्यानो रे ।का४। शुद्ध प्ररूपक साधुजी रे, हुंता धरम जिहाज । गुणियोंने आश्रय हुंता रे, लेखवता सहु लाजो रे । क ५। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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