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________________ ४३० ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह वस्तु:-वरस नेऊ २ मास वलि पंच, पण दिन उपरि तिहां गणिय । सुदि नऊमी वैशाह मासे प्रहवि, हसीय? अमृत घटिय सोमवार। सुरलोक वासे जय २ कार करंति जण, गुण गावे सुर नारि । _ 'श्रीजिनगुणप्रभुसूरि' गुरु, सयल संघ सुहकार ॥६॥ इम गच्छ नायक कला गुणगण रयण रोहण भूधरो। संथार चारों तंगवारण, खंधवास स चोवरो। "श्रीजिनमेरु सूरींद्र' पाटे, 'जिनगुणप्रभु सूरि' गुरो। तसु धवल 'जिनेसर सूरि' जंपे, ऋद्धि-वृद्धि शुभंकरो ॥६१।। , जिनगुणधवास स चोली तमु धवल श्री जिनचन्द्रसूरि गीतम् 'ढाल:-सकल भविक जिन सांभलो रे । 'मरुधर' देशे मंडणो रे, श्रीपुर 'बोकानेर' । 'रूपजी शाह'वसे तिहां रे, धनकर जेम कुबेर धनकर जेम कुबेर रे साचो, 'रूपा दे' तसु घरणी वाचो। जायो पुत्र रतन्न जिण (जा)चो, भवियण लुल लुल चरणे राचो। जी हो 'जिणचंद' जी जी हो , तू जिण सासण सिणगारके । गिरुओ गच्छपती हो तूं तो संवेगी सिरदारके । सेवे सुरपतोजी ।। कल्पवृक्ष जिम वाधतो रे, सरव कला परवीण। बालक वये धर्मनी दिसा, समता रस लवलीण रे । समता रस लवलीण रे जाणी, मात पिता मन उल्लट आणी। गुरुने विहरावे शुभ वाणी, बात एह श्रोसंघ घणी सुहाणी ।२। मतिसागर विहरी करी रे, 'श्री जेसलमेर' गिरि आया । 'वीरजी' ने देखी करी, श्रीपूज्य घणु सुहाया। श्री पूज्य घणु सुहाया रेभाइ, सें हथ चारित्र दे सुखदाइ । 'वीरविजय' ओ नाम सवाइ, आपणी विद्या सयल भणाइ । ४ । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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