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________________ श्री गुणप्रभसूरि प्रबन्ध ४२३ द्वितीय विभागकी अनुपूर्ति। श्री गुणप्रभ सूरि प्रबन्ध दुहा :___ मनधरि सरस्वती स्वामिनी, प्रणमी 'गोयम' पाय । गुण गाइस सहगुरु तणा, चरिय 'प्रबन्ध' उपाय ॥१॥ 'वीर' जिनेसर शासने, पंचम गणि 'सोहम्म' । 'जंबू' अन्तिम केवली, तास पाटे अतिरम्म ॥२॥ तिण अनुक्रमे उद्योतकर, 'श्री उद्योतन सूरि'। 'वर्धमान' वधते गुणे, वन्दो आणंद पूरि ॥३॥ ढाल फागनी :'जिनेश्वर' 'जिनचन्द्र' गुणागर, 'अभय' मुणीन्द । 'जिनवल्भ' 'जिनदत्त', युगोत्तम नमे नरीन्द ॥ 'श्री जिनचन्द्र' 'जिनपत्ति', 'जिनेसर' संभारि, ___'जिनप्रबोध' 'जिनचन्द्र'"कुशल गुरु', हिव सुखकार ॥४॥ श्री जिनपदम' विशारद, सारद करे वखाणि । 'श्री जिन लब्धि' लब्धि गौतम सम, अमृतवाणि ॥ 'श्री जिनचन्द्र' 'जिनेसर', 'जिनशेखर' 'जिनधर्म'। . 'श्री जिनचन्द्र' गणाधिप, प्रगटित आगम मर्म ॥५॥ 'श्री जिनमेरु' सूरीश्वर, सागर जेम गंभीर। संवत पनर बिडतरे, देवगति हुऔ धीर ॥६॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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