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________________ काव्योंका ऐतिहासिक सार जिनवल्लभ सूरिजी पदपर देवभद्राचार्यने ( पद ) स्थापना की । उज्जयन्त पर अम्बिका देवीने अंबड (नाग देव ) श्रावकके आराधनु, करनेपर उसके हाथमें स्वर्णाक्षर लिख दिये और कहा कि जो इन्हें पढ़ सकेंगे उन्हींको युगप्रधान जानना । अंबड़ सर्वत्र घूमा, पर उन अक्षरोंको कोई भी आचार्य न पढ़ सके । आखिर पाटणमें जिनदत्त सूरिजीने अंबड़के हाथपर वासक्षेपका प्रक्षेपन कर उन अक्षरोंको शिष्य द्वारा पढ़ सुनाये, तभीसे आप युगप्रधान बिरुदसे प्रसिद्ध हुए । आपने चौसठ योगिनी और बावन वीरों ( क्षेत्रपाल ) को जीता था और भूत -: - प्रेत आदि तो आपके नामस्मरण मात्रसे पास नहीं आ सकते, सूरि मन्त्रके प्रभावसे धरणेन्द्रको साधन किया था और एक लाख श्रावक श्राविकाओंको प्रतिबोध दिया था । विक्रमपुरमें सर्वसंघको मारिरोग निवारण कर अभय दान दिया और ऋषभ जिनालय की प्रतिष्ठा की । त्रिभुवन गिरिके नृपति कुमारपालको प्रतिबोध दिया |५०० व्यक्तियों को जैनमुनियोंको दीक्षा दी। उज्जैनीमें योगिनी ( ६४ ) चक्रको ध्यानबलसे प्रतिबोधा । आज भी आपके चमत्कार प्रत्यक्ष है और स्मरण मात्र से मन-वांच्छित फल प्रदान करते हैं । सांभर (अजमेर) नरेश ( अर्णोराज ) को जैन-धर्मका प्रतिबोध दिया था । आपके हस्त दीक्षित साधुओंकी संख्या १५०० थी ( : ४६ ) । इस प्रकार आप अपने महान व्यक्तित्वसे यशस्वी जीवन द्वारा चिरस्मीरणीय होकर सं: १२९१ के आषाढ़ शुक्ला ११ को अजमेर नगरमें स्वर्ग सिधारे । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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