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________________ श्री कीर्त्तिरनसूरि गीतम् 'वाचक पद हिव 'सत्तरे', 'असिये' पाठक सार । आचारज सताणवें 'जेसलमेर' मंझार ॥ ४ । की० ॥ सुर नर किन्नर कामिणी, गुण गावे सुविशाल । 1 साधु गुणे करी सोहता, हार बिचे जिम लाल || ५ | की०|| पगला 'अरबुद गिरि' भला, 'जोधपुरे' जयकार | 'राजनगर ' राजे सदा, थुम सकल सुखकार । ६ । की० ॥ माथे गुरु कर ठवै, ते श्रावक धनवंत । सीस सिद्धान्त सिरोमणी, 'राजसागर' गरजन्त || ७ | की | अणसण लेइ रे भावस्युं, संवत् 'पनर पचीस ' । अमर विमाने अवतर्या, श्री 'कीर्त्तिरत्न सूरीस' || ८ | की० ॥ अमीय भरै भल लोयणे, तं मुझ दे दीदार | पाठक 'ललितकीर्त्ति' कहै, दिन प्रति जय-जयकार ||६|| न०-४ श्री 'कीर्त्तिरत्न सूरिंद' तणी, महिमा बाधइ जग मांहि घणी । धरि ध्यानै धावइ भूमि-धणी, महियल मुनिजन सिर मुगट मणि ॥१॥ तेजै कर जिम दीपई तरणी, सद्गुरु सेवा चिन्ता हरणी । भंडार सुधन सुभर भरणी, कमला विमला कांमित करिणी ॥२॥ अड वडीया संकट उद्धरणी, वरदायक जसु शोभा वरणी । घर पावै नर सुधरि घरणी, प्रेम अधिकइ तरिणी परिणी ||३|| सब दोहरा दूरइ संहरणी, फोटक न हुवइ धरिणी फिरणी । अग (लं?) गी अटवी थांनक डरणी, साचउ तिहां गुरु असरण सरणी ||४|| साहि सरोमणि 'देव' घरे, 'देवल दे' जनम्यो उवरि धरौ । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only ४०५ www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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