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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
सिंहगिरि २३ मानतुंग | नार्गाजुन ३३ रविप्रभ वयर स्वामी २४ वीर सूरि गोविन्दवाचक ३४ यशोभद्र आर्य रक्षित २५ जयदेव सूरि संभूतिदिन्न ३५ जिनभद्र दुर्बलिकापुष्य २६ देवानन्द लोकहित ३६ हरिभद्र आर्य नंदि ___ २७ विक्रमसरि दूष्यगणि ३७ देवचन्द नागहस्ति २८ नरसिंह सूरि उमाखाति ३८ नेमिचंद्र रेवंत २६ समुद्र सूरि जिनभद्र ३६ उद्योतन ब्रह्मदीपी ३० मानदेव । | हरिभद्र संडिल्ल ३१ बिबुधप्रभ | देवाचार्य * हेमवंत ३२ जयानन्द नेमिचन्द्र
उद्योतन:
उद्या
* यहांतकका क्रम भिन्न २ पट्टावलियों में भिन्न मिन्न प्रकारसे पाया जाता है। पर इसके पश्चातका क्रम सभी खरतर गच्छकी पट्टावलियों में एक समान है । नं० ५ को पट्ठावलीका (संशोधित) क्रम वजसेन तकका नंदिसून स्थिरावली आदि प्राचीन प्रमाणोंसे प्रमाणित है, पीछेके क्रमको ऐतिहासिक दृष्टिसे परीक्षा करना परमावश्यक है पुरातत्वविद् विद्वानोंका हम इल भोर ध्यान आकर्षित करते हैं ।
* यहां तकके आचार्योंका गुर्वावलियों में नाममात्र ही उल्लेख है । ऐतिहासिक परिचय नहीं। फिर भी इनके नामोंके साथ जो ऐ० विशेषण दिये गये हैं, वे ये हैं:-जम्बूः--९९ कोटि द्रव्य त्याग, संयम ग्रहण । स्थूलिभद्रः-कोश्या प्रतिबोधक, महागिरी -- जिन कल्प तुलना कारक, मुहस्तिः --संप्रति नृपके गुरु, श्यामाचार्य:--पन्नवणा कर्ता, वजूसेनः-१६वर्षायु व्रत ग्रहण, वृद्धदेवःकुमदचन्द्र विजेता, मानदेव:--शान्ति स्वघ कर्ता,मानतुग:-भक्तामर, भयहर स्त्रोत्रकर्ता, वयर स्वामीः-१०पूर्वधर, उमास्वाति:--५०० प्रकरणकर्ता ।
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