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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह 'उन्जेनी' गुरु गए, देखि थांभउ गुरु हरखे ।
____जप्यउ मन्त्र करि ध्यान, लिद्ध पोथी आकरखे ।। तिस बिच सोवन सिद्ध, गुरु बहु विद्या पाइ ।
'चित्रोर' कइ भण्डार, तहां गुरु जाइ रखाइ ।। उस पोथी की बात, 'कुंयरपाल' राजा सुणी।
'ज्ञानहर्ष' कहइ 'पाटणनगर' नवलख असवारां धणी ||३२|| 'कुंयरपाल' जिनधर्म, हइ श्रावक पूनम गच्छ ।
श्रावक सर्व बुलाइ, संघ नायक खरतर गच्छ ।। गुरु यू कुं तुम लिखउ, हेम मिध पोथी आवइ ।
कागद संघ दरहाल, भेज पोथी मंगावइ ।। गुरु लिख्यउ वचन पोथी परइ, छोर न पोथी बांचनी ।
. 'ज्ञानहर्ष' कहइ भण्डार बिच, रख कइ पोथी पूजनी ॥३३॥ गुरु 'कुंयरपाल' कर, 'हेम' नामइ आचारिज ।
तिण पइ पोथी धरी, छोरि बांचउ गुरु आरिज ।। कहत गुरु हम वतइ, अया छोरी नवि जावइ ।।
साधवी गुरु की भइन, छोगितां आँख गमावइ ।। पुस्तक्कि उड़ि भण्डार बिच, 'जेसलमेरन' कइ परी।
_ 'ज्ञानहर्ष' कहत तिस जाइगा, रक्खइ बहु चउसठ सुरी ||३४|| परकमणइ बिच बीज, परत रकवी गुरु ततत्रिण।
'बिपुर' परो मृगी, गमी गुरु स्तोत्र तंज्यउ भण ।। पतरइसइ गृह तहां, महेसरी डागा लूण्या । परबोधे श्रावक, ...
......॥ १७वीं शताब्दी लि० ( इस प्रतिका सातवां मध्य पत्र हमारे संग्रहमें )
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