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श्री जिनवल्लभ सूरि गुरुगुण वर्णन
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॥ श्री नेमिचन्द्र भण्डारि कृत ॥ जिन वल्लभ सूरि गुरु गुणवर्णन
** ।।६०॥ पणमवि सामि वीरजिणु, गणहर गोयमसामि ।
सुधरम सामिय तुलनि, सरणु जुगप्रधान सिवगामि ॥१॥ तित्थु रणुद्ध स मुणिरयणु, जुगप्रधान क्रमि पत्तु ।
जिणवल्लह सूरि जुगपवर, जसु निम्मलउ चरित्तु ॥२॥ तसु सुहगुरु गुणकित्तणइ, सुरराओवि असमत्थो ।
तो भत्ति-भर तर लिओ, कहिउ कहिसु हियत्थु ॥३।। कह भवसायर दुहपवरु, कह पत्तउ मणुयत्तु ।
कह जिणवल्लहसूरि वयां, जाणिउं समय-पवित्तओ॥४॥ कह सुबोह मणउल्लसिय, कह सुद्धउ सामन्नु ।
जुगसमिला नाएण मइए, पत्तउ जिण-विहि-तत्तु ।।५।। जिणवल्लहसूरि सुहगुरुहे, बलिकिज्जउ सुरगुरुराय।
जसु वयणे विजाणियइ, तुट्टइ कम्म-कसाय ।।६।। मूढा मिल्हहु मूढ पहु, लागहु सुद्धइ धम्मि ।
जो जणवल्लहसूरि कहिओ, गच्छहु जिम सिवघरंमि ॥७॥ अथीर माय-पिय-बंधवह, अथोर रिद्धि गिहासु ।
जिणवल्लहसूरि पय नमओ, तोडइ भव-दुह-पासु ॥८॥
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