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________________ श्री जिनवल्लभ सूरि गुरुगुण वर्णन ३६६ ॥ श्री नेमिचन्द्र भण्डारि कृत ॥ जिन वल्लभ सूरि गुरु गुणवर्णन ** ।।६०॥ पणमवि सामि वीरजिणु, गणहर गोयमसामि । सुधरम सामिय तुलनि, सरणु जुगप्रधान सिवगामि ॥१॥ तित्थु रणुद्ध स मुणिरयणु, जुगप्रधान क्रमि पत्तु । जिणवल्लह सूरि जुगपवर, जसु निम्मलउ चरित्तु ॥२॥ तसु सुहगुरु गुणकित्तणइ, सुरराओवि असमत्थो । तो भत्ति-भर तर लिओ, कहिउ कहिसु हियत्थु ॥३।। कह भवसायर दुहपवरु, कह पत्तउ मणुयत्तु । कह जिणवल्लहसूरि वयां, जाणिउं समय-पवित्तओ॥४॥ कह सुबोह मणउल्लसिय, कह सुद्धउ सामन्नु । जुगसमिला नाएण मइए, पत्तउ जिण-विहि-तत्तु ।।५।। जिणवल्लहसूरि सुहगुरुहे, बलिकिज्जउ सुरगुरुराय। जसु वयणे विजाणियइ, तुट्टइ कम्म-कसाय ।।६।। मूढा मिल्हहु मूढ पहु, लागहु सुद्धइ धम्मि । जो जणवल्लहसूरि कहिओ, गच्छहु जिम सिवघरंमि ॥७॥ अथीर माय-पिय-बंधवह, अथोर रिद्धि गिहासु । जिणवल्लहसूरि पय नमओ, तोडइ भव-दुह-पासु ॥८॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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