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श्रीजिनदत्त सूरि स्तुतिः
तव तलफ भीसणह धम्म धीरिमसुरिम२६ सुविसालह । संजम सिर भासुरह दुसहद (व)य दाढ़ करालह || नाण नयण दारुणह नियम निरु२७ नहर समिद्धह ।
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कम्म कोय (a) निट्टरह२८ विमलपह पुंछ पसिद्धह || उपसमण उयर२६ धर दुव्विसह गुण गुंजारव जीहह ।
'जिणदत्तसूरि' अणुसरहु पय पावक - रडि - घड - सीहह ||६|| जर - जल-बहुल- रउद्दु लोह -लहरिहि गज्जंतउ ।
मोह मच्छ उच्छलिउ कोव कल्लोल वर्हतउ ॥ मयमयरिहि परिवरिड वंच बहु वेल दुसंचरु ।
गव्व३० गरुय गंभीरु असुह आवत्त भयंकरु ॥ संसार समुहु३१ जु एरिसउ जसु पुणु पिक्खिवि दरिया |
'जिणदत्तसूरि' उवएसु मुणि पर तरंडइ३३ तरियइ ||७|| सावय किवि कोयलिय केवि खरह३४ (?) रिय पसिद्धिय ।
ठाइ ठाइ लक्खियइ३५ मूढ़ निय वित्ति विरुद्धिय ॥ 'दरहिं न किंपि परत्र३६ वेविसु परुप्परु जुज्झहि ।
सुगुरु कुगुरु मणि मुणिवि न किवि पट्ट तरु बुज्झहिं ॥ 'जिणदत्तसूरि' जिन नमहि पय पउम मच्चु ३७ (गव्वु ) नियमणि वह हि संसार उयहि तरि पडिय 'तिनहु ' ३८ तरंडइ चडि तरिहि ||८|| तव - संजम - सय नियम-धम्म- कंमिण वावरियउ ।
लोह - कोह मय - मोह तहव सव्विहि परिहरियउ |
२६ सूचि, २७ सनहर, २८ निट्ठ रह, २९ उपर, ३० गंथ, ३१ समुहु, ३२ सुणित, ३३ सुतरियइ, ३४ खरतरिय, ३५ लक्खियर्हि, ३६ परत्त, ३७ सच्चु, ३८ जिनहु
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