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________________ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह ३४२ 'होर' पाटि 'जेसिंगजी', पाटि प्रगट जगीस । श्री ' विजयदेव' सूरिसरु, जीवो कोडि वरीस ||१०|| तिणि निज पाटि थापीओ, कुमति मतंगगज सीह । 'विजयसिंह सूरीसरु', सकल सूरि सिर लीह ॥ ११ ॥ रास रचुं रलीयामणो, मनि आणी उल्लास । 'विजयसिंह सूरि' तणो, सुणयो 'विजय प्रकाश' ॥१२॥ सावधान सज्जन सुणो, पहिला दिउ दुइ कान | खंडानी पृथ्वी कही, विद्यानां छइ दांन ॥ १३॥ ढाल :- राग देशाख । अढ़ार कोडा कोडि सागर जेह,, युगला धरम निवारक जेह । 'ऋषभदेव' हुआ गुण गेह, धनुष पंचसइ सोवन देह ॥ १४ ' आदीश्वर' निं सुत शत एक, 'भरतादिक' नामिं सुविवेक । आप पाट 'भरतेसर' आप्यो, 'बहली देश' 'बाहूबलि' थाप्यो ॥ १५ ॥ 'मरत' तणा अठाणुं भाइ, तेमां एक 'मरुदेव' सवाई | तिणि निज नामि वसाव्यो देश, तेह भणी भणियइ 'मरु देश' ||१६|| ईति अनीति नहीं लवलेश, धर्म तणो ते कहिइ देस । चोर चरड नी न पडइ धाडि, बड़ा बड़ा जिहां छइ व्यवहारी, सत्रुकार करइ अनिवारी । मोटा तीरथ नी जिहां सेवा, मोतीचूर मिठाइ मेवा || १८ || राजा पिण जिहां धरम करावइ, परमेसर नी पूजा मंडावइ । सहजिं जीव अमारि पलावइ, आहेडा उपरि नवि आवइ ||१६|| सूर सुभट मांटी मुंछाला, करि झलकइ करवाल कराला । व्यापारी दीसइ दुदाला, घरि घरि सुभित्र सुगाला ||२०|| www.jainelibrary.org Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only **।।१७
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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