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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह गुणवन्ता हो गच्छपति, श्रीजिनचन्द्र सूरी सुखकरू ।। आंकडो ॥ मिलि मिली आवो हे सखर सहेलियां, भरि मोतियड़े थाल ।गु०॥ वांदण जास्यां हे खरतर गच्छ धणी, जीव दया प्रतिपाल ॥२॥गु०॥ संघ साम्हेले हो साम्हा संचरै, मन धरि अधिक आणन्द ।गु०। बाजा बाजै हो गाजै अम्बरै, गच्छपति ना गुण वृन्द ॥३।।गु०॥ गुणियण गावे हो गुण पूजजो तणा, बोले मुख जै जै बोल ।गु०॥ कीरति थांरी हो गंगाजल जिसी, दस दिशि करै कल्लोल ॥४॥गु०॥ पग पग कीजे हो हरखं गूंहली, दीजै वंछित दान ।गु०। सूहव गावै हो मङ्गल सोहला, ग्डि. धूं धूं घुरे निसाण ॥५॥ गु०॥ नर नारी ना हो परिकर बहु मिलै, वंदण भणी विशेष ।गु०॥ आय विराज्या हो पूजजी पाटिये, ये धर्मरा उपदेश ॥६॥गुणा नवरस सरस सुधारस वरसती, गरजती जलद समान |गु० सुणतां लागै हो श्रवण सुहामणो, इसी म्हारै पूजजीरी वाण ॥७॥गु०॥ नित नित नवला हो हरख बधामणा, पूरव पुण्य प्रमाण ।गु०॥ जिण दिशि देशे हो पूज्य समोसरे, तिण दिश नवे निघान ॥८॥गु०॥ पंचाचार हो पूज्य सदा धरै, पूज्य सुमति गुपति सोहन्त ।गु०॥ गुण छत्तीसे हो अंग विराजता, पूज भविजन मन मोहन्त ॥६॥गु०॥ चद ज्युं दीसे हो नित चढती कला, 'जिन युक्ति सूमि' जी रे पाट |गु०॥ श्री गौयम जिम बहु लब्धे भर्या, सोहे मुनिवर थाट ॥१०॥गु०॥ धन 'बीलाड़ा' हो संघ सराहिये, पूज रह्या चोमास ।गु०॥ जिन शासन नी हो थई प्रभावना, सफल फली सहु आश ॥११॥॥ मात “जसोदा" हो नन्दन जाणिये, 'भागचन्द' सुत सुविचार (गु०। युगप्रधान हो जगमें अवतर्या, गोत्र ‘रीहड़' सिणगार ।गु० पूज प्रतपो हो जा रवि चन्द्रमा, हो पूज जोवो कोड़ बरीस गु०। इम निज मनमें हो हरख धरी घणो, 'आलम' चे असीस ॥१३॥गु०॥
॥ इति श्री पूज्यजी गीतम् ॥
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