________________
श्रीजिनचन्द्र सूरि पट्टधर श्रीजिनहर्षसूरि गीतम्
आद्यपक्षीय ( खरतरगच्छीय ) आचार्यशाखा
जिनचंद सूरि पट्टधर श्री जिनहर्ष सूरि गीतम्
३३३
सखि देख्यउ हे सुपनउ मई आज, श्री गच्छराज पधारिया ।
सखि सगलां हे साधां सिरताज, श्री 'जिनहरख' सूरिश्वरु ॥१॥ सखि चालउ हे करनी गज गेलि, ढेल तणी पर ढलकती ।
खिम्हांका सद्गुरु मोहनवेलि, वाणि अमीरस उपदिसइ ||२|| सखि सजती हे सोलह श्रृंगार, ओढी सुरंगी चूनड़ी ।
सखि शीसह घर कलश उदार, मोत्यां थाल बधामणउ ! | ३ || सखि जुगवर चवद विद्या रा जाण, जाणी तल सारइ जगइ |
सखि मानइ हे सहु राजा राण, पाटइ श्री 'जिणचंद' कइ || ४ ||| सखि दीपइ 'दोसी' वंश दिणन्द, 'भगतादे' उयरइ धर्या 1 सखि जीवउ 'भादाजी' रउ नद, 'कीरतवर्द्धन' इम कहइ ||५||
Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org