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श्रीजिन शिवचन्द्रसूरि रास
प्रथम पोहोर मांहे तिहां, धरता जिननुं ध्यान |
काल करी प्रायें चतुर पाम्या देव विमान || ढाल ७ :-माइ धन सम्पन्न ए, धनजीवी तोरी आज । ए देशी० । धन धीरज दृढ़ता, धन धन सम परिणाम ।
जेणे परिसह सही ने, राख्युं जग मांहै नाम ॥१॥ बलिहारी तोरी बुद्धि ने, बलहारि तुम ज्ञान ।
जेणे आतम भावे, आराध्यं शुभ ध्यान बलिहारी तुम कुल ने, बलिहारी तुम वंश |
शासन अजुआली, अजुयाल्यो निज हंस ||३|| गुरु कुमर पणे रह्या, तेर वरस घर वास ।
शिष्य विनय पणें रह्या, तेर वरस गुरू पास ॥ गच्छनायक पदवी, भोगवी, वरस अढार ।
आयु पूरण पाली, वरस चुमालीस सार धन धन 'शिवचन्दजी', धन धन तुझ अवतार |
इम थोके थोके, गुण गावे नर नार । करे श्रावक मली तिहां, मांडवी मोटे मंडाण ।
कंचनमय कलसे, जाणें अमर विमाण तिहां जोवा मलोया हिन्दु मलेछ अपार ।
जय जय नन्दा कहे, लीये डंडा रस सार |
वली अगर उखेवे, सोवन फूलें वधावे ।
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गाय धवल मंगल, दीये ढोल तणा ढमकार ||
||२||
सुकडने अगर सुं, कीधो देही संस्कार |
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भेर भूगल साथै, सरणाइ रणकार ||६||
॥५॥
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इम उछव थाते, वन मांहे लेइ आवे ||
निरबाण महोछत्र, इणि परे कीधो उदार ||७||
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