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________________ ३२६ / // / / / / / / / श्री जिन शिवचन्द सूरि रास एह थी नरग निगोद मांहे घणीरे, तेंतो वेदन सही सदीवरे ॥१॥ धन धन मुनी सम भावे रह्या रे, तेह नी जइये नित्य बलिहार रे । दुःकर परीसह जे अहियासने रे, ते मुनी पाम्या भव नो पारध२।। 'खंधग' मुनीना जे शिष्य पांचसैरे, पालक पापीयें दीधा दुःखरे । 'घाणी घाली मुनीवर पोलीयारे, ते मुनि(प्रणम्या)अविचल सुख रे॥धना३ 'गजसुकमाल' मुनी महाकालमें रे, स्मसाने रहीया काउसग्गजो। 'सोमल ससरे' शीस प्रजालियोजी, ते मुनि प्रणम्या ( पाठा० पाम्या) सुख अपवर्ग जो ॥१०॥४॥ 'सुकोशल' मुनिवर संभारीयेजो, जेहना जीवित जन्म प्रमाण रे । बाघणे अंग विदार्य साधुनुंजी, परिसह सही पहुंता निरवाण हो॥५॥ 'दमदन्त' राजऋषि काउसग रह्माजी, कौरव कटक हणे इंटाल जो। परिसह सही शुद्ध ध्याने साधुजी रे, ते पण मुगते गया ततकाल जो ॥०॥६॥ 'खंधग' ऋषिने खाल उतारतांजी, कठीन अहीयासे परिसह साधु जो । ते मुनी ध्याने कर्म खपावीनेजी, पाम्या शिवपद सुख निरबाध जो ॥०॥७॥ इत्यादिक मुनिवर संभारताजी, धरता निजपद निरमल ध्यान जो। जड चेतन नी भावे भिन्नताजी, वेदक चेतनता सम ज्ञान जो॥ध०८।। तत्वरमण निज वासित वासनाजी, ज्ञानादिक त्रिक शुद्ध जो । जडता ना गुण जडमें राखताजी, जेहनी आगम नैगम बुद्धजोध०॥६॥ पुदगल आप्पा (थप्पा) लक्षणे जी, पुद्गल परिचय कीनो भिन्न जो । अन्त समय एहवी आत्मदशाजी, जे राखे ते प्राणी धन्न जोध०१०॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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