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________________ ३२२ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह ढाल (१) — श्रेणिक मन अचरज थयो । ए देशी । मरुधर देश मनोहरू, नगर तिहां 'भिनमालो' रे । राजा राज करे तिहां, 'अजित सिंघ' भूपालो रे मरु० || १|| गढ़ मढ़ मंदिर शोभता, वन वाड़ी आरामो रे । सुखीया लोक वसे तिहां, करे घरमा ना कामो रे || मरु०||२|| तेह नगर मांहे वसे, साह 'पदमसी' नामो रे । 'ओश (बाल) वंश' साखा बडी, 'शंका' गोत्र अभिरामो रे || मरु०॥३॥ तस घरणी 'पदमा ' सती, श्राविका चतुर सुजाणो रे । सुत प्रश्रव्यो शुभ योग (ति) थी, 'सिवचंद' नाम प्रमाणो रे | मरु० |४| कुमर वधे दिन दिन प्रतइ, सेठजी हृदय विमासे रे । पूत्र निसाले मोकलूं, अध्यापक ने पासे रे ।। मरु० ॥ ५ ॥ भणी गुणी प्रोढा (पाठा० मोटा ) थयां, बोले मधुरी भाषो रे । संसारिक सुख भोगना, कुमर नें नहीं अभिलाषो रे | मरु० |६| इणे अवशर गुरु विचरता, तिणहीज नगरीमें आव्या रे । श्री ' जिनधर्म सूरिंद' जी, श्रावक जन मन भाव्या रे | मरु०|७| पइसारो महोछव करी, नगर मांहे पधरावे रे | श्रावक श्राविका तिहां मिली, गीत ज्ञान गुण गावे रे | मरुट। धन धन ते दिन आज नो, धन ते वेला जाणो रे । जेणे दिन सदगुरु वांदीयइ, कीजिये जन्म प्रमाणो रे | मरु० |हा दूहा - थिर चित जाणी परषदा, गुरूजी दीये उपदेश । जीवाजीव स्वरूप ना, भाख्या सकल विशेष ॥ १ ॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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