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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
'चउदसमइ 'जिनपद्म सूरिस', 'लब्धि सूरि' 'जिनचंद' मुणीश | सतर ( स ) मइ 'जिनोदय' सूरि, श्री 'जिनराज सूरि' गुण भूरि | ११ | पाटि प्रभाकर मुकुट समान, श्री 'जिनवर्द्धन सूरि' सुजाण ।
शीलइ सुदरसण जंबू कुमार, जसु महिमा नवि लाभइ पार || १२ || श्री 'जिनचंद सूरि' वीसमइ, समता समर ( स ) इंद्री दमइ ।
वंदो श्री 'जिनसागर सूरि', जास पसाइ विघन सवि दूरि ||१२|| चउरासी प्रतिष्ठा कीद्ध, 'अहमदाबाद' थूभ सुप्रसिद्ध ।
तासु पदइ 'जिनसुंदर सूरि', श्री 'जिनहर्ष सूरि सुय पूरि ||१४| पंचवीस मइ 'जिनचंद्र सूरिंद', तेज करि नइ जाणइ चंद | श्री ' जिनशील सूरि' भावइ नमो, संकट विकट थकी उपसमउ || १५|| श्री ' जिनकीत्ति' सूरि सुरीश, जग थलउ जसु करइ प्रशंस । श्री 'जिनसिंह' सूरि तसु पट्टइ भणुं, धन आवइ समरंता घणुं ॥ १६ ॥ वर्त्तमान वंदो गुरुपाय, श्री 'जिनचंद' सूरिसर राय ।
जिन शासन उदयउ ए भाण, वादी भंजण सिंह समाण ||१७| - खरतर गुरु पट्टावली, कोधी चउपइ मन नी रली ।
ओगणत्रीश ए गुरुना नाम, लेतो मनवंछित थाये काम ||१८|| प्रह उठी नरनारी जेह, भणइ गुणइ रिद्धि पामइ तेह | 'राजसुंदर' मुनिवर इम भाइ, संघ सहु नइ आणंद करइ || || इति श्री गुरु पट्टावली चउपइ समाप्त ॥ श्र० कील्लाइ पठनार्थे ॥ मो० द० दे० ॥
यह पट्टावली श्री जिनचंदके शिष्य पं० राजसुंदरने देवकुल पाटन में सं० १६६६ वैशाख वदि ६ सोम श्र० थोभणदे के लिये लिखी है। (देवकुलपाटक तृतीयावृत्ति पृ० १६)
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