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जिनसमुद्रसूरि गीतम्
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॥ जिनसमुद्र सूरि गीतम् ॥
ढाल-कडखउ, राग गुंढ रामगिरि सोरठ अरगजो सुधन दिन आज जिन समुद्र सूरिंद आयो, सूरिंद आयो। वडो गच्छराज सिरताज वर बड वखत,
तखत 'सूरेत' मई अति सुहायो ॥ १ ॥ आवीयई पूज्य आणंद हुआ अधिक,
इन्द्रि पिण तुरत दरसण दिखायो । अशुभ दालद्र तणी दूर आरति टली,
सकल संपद मिली सुजस पायो ।॥ २॥ उदय उदयराज तन सकल कीधो उदय,
वान वेगड गछइ अति वधायो । जांचकां दान दीधा भली जुगत सुं,
सप्त क्षेत्रे वलि सुवित्त वायो ॥३॥ सबल साम्हो सजे स गुरु निज आणीया,
शाह 'छतराज' मनमइ उमायो । गेहणी सकल हरषइ करी गह गही,
विविध मणि मोतीया सुं बधायो॥४॥
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