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________________ ३१६ . ऐतिहासिक जेन काव्य संग्रह ॥श्री जिनचंद्र सूरि गीत ॥ राग:-मारू आज फल्यो म्हारई आंबलोरे, परतख सुरतरु जाण । कामधेनु आवी घरे रे, आज भले सुविहाण । पधार्या पूज्यजी रे। श्री 'जिणचंद सूरिंद' पधार्या पूजजी रे । श्री चंद कुलांबर चंद पधार्या, श्री खरतर गच्छ नरिंद ।पू०॥१॥ श्री वेगड गच्छ इंद पधार्या पूज्यजी रे । ढोल दमामा वाजीया रे, वाज्या भेर निसांण ।, सुमति जन हरषित थया रे, कुमति पड्यो भंडाण ॥ प० ॥२॥ घरि घरि गूडी ऊछलइ रे, तलीया तोरण बार। पाखंडी कांनई कीया रे, वेगड गच्छ जयकार गच्छ खरतरजू।३. सूहव बधावो मोतीयइ रे, भर भर थाल विशाल । खोटा कूड कदाग्रही रे, ते नाठा तत्काल | प०॥ ४ ॥ वडई नगर ‘साचोर' मई रे, श्री पूज उग्यो भाण । तारां ज्यु झाखां थया रे, खोटा अ(उ)र अजाण ।। प० ॥ ५ ॥ पाटि विराज्या पूजजीरे, सुललित वाण (वखाण)। अशुद्ध प्ररूपक मयलडा रे, त्यांना गलोयां मांण ।। प० ॥ ६ ॥ 'बाफणा' गोत्र कला निलोरे, शाह 'रूपसी' नो नंद। “श्री जिन समुद्र" कहइ पूज्यजी रे, प्रतपो ज्यु रविचंद ।प०१७ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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