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________________ ३०८ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह उपाध्याय क्षमा कल्याणाष्टकम् । चिदब्धः पारज्ञः स्फुरदमल पङ्क रुह मुखो, मुदानंत ध्यायी मुनि गणवरो मारशमनः । सदा सिद्धांतार्थ प्रकटन परो वापति समः, क्षमाकल्याणोऽसौ नयनमृतिगामी भवतु मे ॥१॥ गुरो तवांघ्रिदर्शनं मदीय मानसे मुदे । भवेद्यथैव केकिनां गिरौ पयोद लोकनम् ॥२॥ महोकलायदीयगां निपीय कर्ण संपुटैः। भवंति मोदसंयुताः जनाः सुशर्म भागिनः ॥३॥ तपः पुंज युजोऽजस्रं ध्यान संमग्न चेतसः । क्षमाकल्याण सन्नाम्नो गुरून्वन्दे गुरुधु तीन् ॥४॥ गुरु ज्ञानप्रदं नौमि सद्धर्माचार चंचुरं। ___ यदक्षि करुणा दृष्टैः पूतोऽधर्मी भवत्वरं ।।५।। विरामं विपदां शश्वत्स्मरतां भूमि मण्डले । वन्दारु नर मन्दारमुपासे गुरु पत्कजं ॥६।। मोह मास्थत्सदा सेन्योहृद्वाक् संहननैर्मया । योयं गांयेयं वर्णाभः सौजन्याद वनौचिरं ॥७॥ काम मोह राग रोष दुष्ट दाव वारिदस्य । दर्शनं जनाघहारि अस्तुमे सुपाठकस्य ।।८।। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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