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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
पूज पधार्या हे पाट अमिय समाणी हो वाणी उपदिसें जी । सुणि सुणि श्रवण सहेज बहु नर नारी हे हियड़उ उल्लसै जी ||१०| जां शशि सायर सूर जां धुर मेरु महीधर थिर रहै जी । श्री 'जिनलाभ' सूगेश, तां चिर प्रतपो हो मुनि'माणक' कहै जी ॥ १२॥ ( २ )
एक सन्देश पंथी माहरो, जाइनें वीनविजे करजोड़ । गरुआ पूजजीहो महिर करोन गच्छति आविजै, वांदणरौ म्हांने कोड़ ||०||१| वहिला पधारो 'थलवट' देशमें, श्री संघ जोवै थांरी वाट | ० | ढोल न कीजै हो पूज इण वात री, साथै मुनिवर थाट ||०||२|| 'कच्छ' धरा सुं हो पूज्य पधारि नै, नाइसक्या इण ठाइ | ग० म्हे पण जाण्यो जिण थानै राखिया, विचही में विलमाइ ||०||३| 'जेसलमेरा' श्रावक जोइने, पूत्र रह्या लोभाइ |०|
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मुंह मीठां सुं मनड़ो मोहियो जी, दूजा नावे दाइ ||०||४|| म्हां तो कागल साहिबा जी मोकल्या, लिख लिख अरज अछेह | Tol तौ पिण पाछौ जा ( ब ) ब न आवियो, पूज खरा निसनेह || ग०णा५॥ मनमें ऊमाहो गच्छपति छै घणुं, सुणिवा थांहरी वाणि | ग०। नाम तुम्हीणो खिण नहीं वीसरु, वंदावौ हित आणि ॥६॥ पाटोघर मानीजै माहरी वीनति, श्री खरतर गच्छ ईश | ग०। 'बीकाणै' चौमासो कीजिये, श्री 'जिनलाभ' सूरीश ||०|| अरज अम्हीणी पूज्य अवधारिज्यो, सूरीसर सिरि इंद | ग० | बेकर जोड़ी त्रिकरण भाव सुं, वंदै मुनि 'देवचंद ' ॥०॥८॥ ॥ इति श्री पूज्यजारी भास सम्पूर्णम् ॥ लिखितं पं० जीवन० छोटै स्याला मध्ये कोठारियां रे खण मध्ये || शुभं भवतु, कल्याण मस्तु ॥
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