________________
श्री जिनलाभ सूरि गीतानि २६३ ॥श्री जिनलाभ सूरि गीतानि ॥ ढाल-ऊंची-नीची सरवरीयैरी पाल, एदेसी लहकमें । आज सुहावो जी दीह, आज नै बधावोजी अम्ह घर आंगणैजी । अंग उमाहो जो आज, सहगुरु हे आया आणन्द अति घगै जी ॥१॥ आवो हे सहियर साथ, सजि सजि हे सोल शृङ्गार सुहामणाजी। जंगम तीरथ एह, वंदन कीजइ हो छीजइ दुख घणा जी ॥२॥ धन धन सोइज देश, धन धन गाम नयर ते जाणियइ जी। जिहां विचरै गच्छ राण, भाण प्रतापी हे सुजस वखाणियइ जी ॥३॥ धन 'पंचाइण' तात, धन ‘पदमा दे' हो मात महीतलै जी। 'बोहित्थ वंश' विख्यात, कुल उजवालण पूज जी इण कलैं जी ॥४॥ सवि सिणगार्या हे हाट, प्रोलि रचाई हो च्यारु फावती जी। वदै सकोइ जीह, श्री जिन-शासन महिमा दीपती जी ।।५।। मिलीया हे महाजन लोक, उच्छव मंड्यो हो अति आडम्बरे जी। दे मन वंछित दान, याचकजन धन धन जस उच्चरै जी ॥६॥ गोरी गावै जी गीत, फरहर गयणंगणि धज फरहरइ जी। कोतिल वलि गन वाजि, खुरिय करता हो आगल संचरै जो ॥७॥ दुन्दुभि ढोल दमाम, झलरि भुंगल भेर नफेरीयां जी। बाजै वाजिब सार, फलई बिछाई हो 'वीकपुर' सेरिया जी ॥८॥ हीर अनै वलि चीर, माणिक मोती हो वारीजै छता जी। पथरीजै पटकूल, मुनिपति आवै हो गज गति मलपता जी ।।६।।
Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org