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________________ देव विलास २८४ तस सीस दोय सुसीलता, पूज्य पूजा हो 'सभाचंद' 'विवेक', गुरुनो प्रेम शिष्य उपरे, गुरु विद्यमाने हो वादी कीया भेक ॥ध०।। शिक्षा देवे उपाध्यायजी, सर्वशिष्यने हो कहे धारी प्रेम , समयानुसारे विचरज्यो, पापबुद्धि हो नवि धरस्यो वेम ॥७०॥ पग प्रमाणे सोडि ताणज्यो, श्री संघनी हो धारज्यो तमे आण , वहिज्यो सूरिनी आज्ञा, सूत्र शास्त्रे हो तुमे धरज्यो ज्ञान ॥८॥ तूज समरथ छो मुज पुठे, मुझ चिंता हो नास्ति लवलेस , सपरिवार ए ताहरे खोले छे, हो मुक्या सुविशेष ॥४०॥ तव 'मनरूप' जी गुरु प्रत्ये, कहे वाणी हो जोडी हाथ , गुरुजी तूमे वडभागीया, पामर अमे हो पण शिर तुम हाथ ॥१०॥ सकल शिष्य भेला करी, गुरुजोये हो सहुने थाप्यो हाथ । प्रयाण अवस्था अम तणी, वाणी केहवी हो जेहवो गंगापाथ ॥१११०।। दशवैकालिक उत्तराध्ययननां, अध्ययनने सांभले गुरुराय । यथार्थ सर्व मन जाणता, अरिहंतनोहो ध्यान धरे चित्तलाय ॥१२॥ संवत 'अढार बारमे', 'भाद्रपद' मासे हो 'अमावस्या' दिन , प्रहर एक रजनी जातां, देवगति लहे 'देवचंद्र' धन धन्य ॥१३०| मोटे आडंबरे मांडवी, चोरासो गच्छना हो श्रावक मल्या वृन्द, अगर चंदने काष्टे भली, चिता रचिता हो महाजन सुखकंद ॥१४३०॥ प्रतिपदाए दहन दीयुं, गुरु पूठी द्रव्य घणो खरचंत , तिथियो जमाडि बहोलता, जाणे अषाढो हो घने करो वरसंत ॥१५३०॥ ए देवचंद्रना वयणथी, द्रव्य खरच्या हो अगणीत सुभठाम , धा धन खरचाइयुं, एहवा गुरुना हो कीधा गुणग्राम ॥१६ध०।। १६ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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