________________
देव विलास
२७७
प्रतिष्टा तिहां कीधी भव्य, ओच्छव कीधा नवनव्यरे । स० । "क्रियाउधार' कीधो 'देवचंद्र', काड्या पाप परिग्रहफंदरे ।स० १६। ढाल कही ए पांचमी रुडी, ए वात न जाणस्यो कूडोरे । स० । कवियण कहे आगल संबंध, वली सोनुने सुगंधरे ।स० २०।
दोहा। क्रिया उद्धार 'देवचंदजी', कीधो मनथी जेह,
. ए परिग्रह सवि कारिमो, अंते दुःखनु गेह ॥ १ ॥ नव नंद नी नव डुंगरी, कीधो सोवनराशि,
साथे कोइ आवी नहीं, जूठी धरवी आसि ॥२॥ धन धन श्री 'शालिभद्रजी', धन धन धन्नो सुजात,
अगणित ऋद्धिने परिहरी, ए कांइ थोडी वात ॥ ३ ॥ बत्रीस कोटिसोवनतणी, 'धन्नो' काकंदी जेह,.
मूकी श्री जिन 'वीरनी', दीक्षा लीधी नेह ॥४॥ देवचंद मनमें चिंतवे, हुं पामर मनमाहि, मूर्छा धरूं ते फोक सवि, सत्य प्रभु मारग बांहि (मांहि ?) ।। ५ ॥ संवत 'सतरसत्यासीये', आव्या 'अमदाबाद,'
लोक सहु तिहा वांदवा, आव्या मन आल्हाद ॥ ६ ॥ 'नागोरीसरा(य)' जिहां अछे, तिहां ठवीया मुनिराज,
निर्लोभी निष्कपटता, सकल साधुशिरताज ॥ ७ ॥ साधु श्री 'देवचंदजी', स्यादवादनो युक्ति,
जीवद्रव्यना भावने, देखाडे ते व्यक्ति ॥ ८ ॥
Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org