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________________ २७२ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह गुरु देखी हर्षित थया, वहुराव्यो पुत्र रतन, धर्मलाभ गुरु तव दीये, करजो पुत्र जतन ॥ २ ॥ वाचक श्री राजसागरु', कोविदमें शिरताज, दिन केतलाएक गया पछी, मन चिंत्यु शुभकाज ॥३॥ दीक्षा देवी शिष्यने, सुभ महुरत जोइ जोस, सुभ चीघडीए देखीने, तो थाये संतोष ॥ ४ ॥ संघ सकलने तेडीने, दीक्षानी कही वात, वचन प्रमाण करे तिहां, उलस्यां सहूनां गात्र ॥ ५ ॥ शुभ ओछव महोछवे, दीक्षा दीये गुरुराय, . संवत 'छपने' जाणोये, लघु दीक्षा दीये गुरुराय ॥ ६ ॥ श्री 'जिनचंदसूरीश्वरे', वडी दीक्षा दीये सार, 'राजविमल' अभिधा दीउ, श्रीजीनो घणो प्यार ॥७॥ 'राजसागरजी'ये हितधरी, सरस्वतीकेरो मंत्र, आपु शिष्य 'देवचंद ने', मनमें कीधो तंत्र ।। ८ ।। गाम 'बेलाडु' जाणीये, 'वेणातट' सुभरम्य. भूमिगृहमें राखीने, साधन करे तारतम्य ॥ ६ ॥ थइ प्रसन्न सरस्वती, रसनाने कीयो वास, भणवानो उद्यम करे, श्री गुरुसाहाज्य उलास ॥१॥ देशी-वारी म्हारा साहिबा देवचंद्र अणगारने हो लाल, सुभ शास्त्र तणा अभ्यासरे, देखीने ठरे लोयणा । प्रथम षडावश्यक भणे हों लोल,के(ते?)पछी जैनशैलीनो वासरे। दे॥१॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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