________________
कविवर जिनहर्ष गीतम्
२६१
V
'-
-
'
कविवर जिनहर्ष गीतम् ।
॥ दोहा ॥ सरसति चरण नमी करी, गास्युं श्री ऋषिराय । श्री 'जिनहरष' मोटो यति, समय अनुसार कहिवाय ।।१।। मंद मतोने जे थयो, उपगारी सिरदार । सरस जोडिकला करी, कर्यो ज्ञान विस्तार ॥२॥ उपगारी जगि एहवा, गुणवंता व्रत धार । तेहना गुण गातां थकां, हुइ सफल अवतार ॥३॥
वाडी ते गुडां गामनी ॥ देशी ॥ श्री जिनहरष मुनीश्वर गाईये, पाईयै वंछित सीद्ध। दुसम काल मांहिं पणि दीपती, किरिया शुद्धो कीध ॥१।। श्रीजि० ॥ शुद्ध क्रिया मारग अभ्यासता, तजता मायारे मोस । रोस धरइ नही केहस्युं मुनीवरू, सुंदर चित्तई नही सोस
॥२॥श्रीजि०॥ पंच महाव्रत पालै प्रेमस्यु, न धरै द्वेष न राग। कपट लपेट चपेटा परिहरइ, निरमल मन मैं वइराग ॥३॥श्री।। सरल गुणे दूरि हठ जेहनें, ज्ञाने शठता (र) दूरि। ममता मान नही मनि जेहने, समता साधु नुं नूर ॥४॥श्री।।
Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org