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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
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( ५ ) पंचनदी साधन कवित्त
उछलती जल अकल बोल, कल्लोल छिलंतो। वलती वलती वेल झाग अत्थाग झिलंती। भमरेटे भयभीत भभकती तटे भिडंती ।
पडती जुडती पवन ज अनम जड उथेंडती । जप जाप आप परताप जप, सूरि मंत्र सानिध सबल । 'जिनरतन' पाट 'जिणचन्द' जुगत, 'पंच नदी' साधी प्रबल । १। । कवित्त पंचनदी साधी तिण समय रो ( १८ वीं शताब्दी लि०)
बाचक अमरविजय गुण वर्णन
कवित्त साच शील संतोष, साधु लछन सकजाई। बरषत अमृत बचन, विपुल विद्या वरदाई । 'उदयतिलक' गुरु आप, हरष सुं दीयो बोध हित । पुन्य थान निज परसि, चौपडै कीयो विमल चित्त । सज्जन सुभाव सुख मुं सदा, शास्त्र हेत बूझे सकल । वाचक वदां वखतैत वर, 'अमरसिंह' तुझ यश अचल ।।१।।
(जयचन्दजी के भण्डारस्थ उपरोक्त पत्र से)
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