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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह कर दाहिण सिर थापइ जेहनइ रे,ते नर पामइ वंछित आथि रे ।२।श्री० ईति उपद्रव को न हुवइ किहां रे, जिहां किणि विचरइ श्री गछराज रे। घरि २ मंगल होवइ नवनवा रे, जावइ भावठि सगली भाज रे ।।श्री० धन-धन श्रावक नइ वलि श्राविका रे, भावइ आवि सुणइ उपदेस रे । पामी धरमलाभ गुरु आसिकारे,शाता सुखनउ जाणि निवेस रे।४।श्री० जोतां नयणे बीजा गच्छपति रे, ते नावइ जुगवर ताहरी जोडि रे। खजूया कोडि मिलई जउ एकठारे,तउकिम थायइ सूरिज होडि रे।५।श्री० श्री जिनरतन' आदेसइ आविया रे, रंगइ 'राजनगर' चउमास रे। वयणे* सगुरु तणे पदवी लही रे,चिहु दिशि प्रगट्यउ पुण्य प्रकाश रे ।६। 'नाहटा'वंशइ'जइमल"तेजसी रे,देव गुरू भगती माता तास रे।। हरखई 'कसतूरां' उछव करी रे, शोभा वधारी जगमई खास रे।७।श्रीद कुल उजवालक 'गणधर' गोतमइ रे, सहस करण' सुपीयार दे' नंद रे। सुप्रसन्न हुइ जोवइ जिण सामुंहउ रे, तेहना जावइ दोहग दंद रे ।८। ध्र शशि गिर अविचल जांलगइ रे, तां लगि प्रतपउ गच्छाधीश रे । वाचक रूपहरष'सुपसाउले रे, हरषचन्द' पभणइ अधिक जगीस रेह। - इति श्री गुरु गीतम् (सं० १७३० आसू वदि ८ बीकानेरे लि० पत्र २ हमारे संग्रहमें)
जोहो पंथी कहि संदेसडउ, जीहो पूज्य जी नइ पाइ लागि । जीहो। गुरु दरसण तू देखतां जीहो, जागस्यइ तुरा भागि । १ ।
*मानजीकृत गीतमें भी सहमुख (इ)श्रीपूजजी रे, अमृत एहवी वाणि । पाटइ एहनउ थापज्यो रे, करज्यो वचन प्रमाण । ४ । मे।
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