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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
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विधि सु विरचित रे, जिणि 'संवेगरंगशाला' ।
गुरु 'जिनचन्द सूरि' रे, तेज तरणि सुविशाला। सुविशाल सुथंभण पास प्रकाशक, नव अंग विवरण करण न(व?)रो। __ श्री 'अभयदेव सूरि' वर तसु पाटइ, श्री जिनवलभ सूरि' गुरो॥ 'अंबिका देवी' देसित युगवर, 'जिनदत्त सूरि' अदीणो। ___ नरमणि मंडित 'जिनचंद' पदि, 'जिनपति' सूरि प्रवीणो ॥२॥ 'नेमिचन्द' नन्दन रे, सूरि 'जिनेसर' सारा,
सूरि सिरोमणि रे जिन प्रबोध उदारा। सुविचार उदारा 'जिनचन्दसूरि', 'जिनकुशल सूरि' 'जिनपद्म' मुणी श्री 'जिनलब्धि सूरि' 'जिणचन्द', 'सुगुरु जिणोदय' सूरि मुणो । 'जिनराज' मुनिप (ति) 'जिनभद्र' यतीसर,
श्री 'जिणचन्द सूरि' 'जिनसमुद्र' वसी। श्री 'जिनहंस सूरि' मुनि पुंगव श्री 'जिनमाणिक सूरि' शशी ॥३।। तसु पदि परिगडउ रे, गुण मणि रोहण सोहइ।
'रीहड' कुलतिलउ रे, सकल सुजन मन मोहइ । मोहइ वचन विलास अमृत रस, 'श्रीवंत' साह जनेता।
'सिरियादे' उरि रत्न अमूलक, श्री खरतर गच्छ नेता 4 "नयरंग" भणइ विसद विधि वेदी, संघ सहित निरदंदी।
श्री 'जिनचन्द' सूरि सूरीश्वर, चिर नन्दउ आणन्दी ।। ४ ।।
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