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________________ २१६ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह वारिय चेइयवास वास, थापिय मुणिवर केरु । सूरि 'जिणेसर' गुरुराय, दीपइ अधिकेरु ।।६।। 'श्रीजिणचंद' मुणिन्द चंद, जिम सोहइ सप्पह । विवरिय जेण नवंग चंग, पयडी थंमण पहु ।। निय वयणिहि गुण कहइ जासु, सीमंधर जिणवर । - सलहिज्जइ सिरि 'अभयदेव',सो सूरि पुरन्दर ।।७।। 'बागड़िया' 'दस स(ह)स' सार. सावइ पडिबोहिय । चित्रोड़ी' 'चामंड' चंड, जसु दरसणि मोहिय ॥ 'पिण्डविसोहो' विचार सार, पयरण निम्माविय । 'जिणबल्लह' सो जाणीयइ ए, जण नयण सुहाविय ।।८।। भास 'अंबा' एवि पयास करि, जाणी जुगहपहाणो । 'नागदेवि (व?)' जो मुणिपवर वाणी अमिय समागो ।।६।। अहे अमी समाण वखाण जासु, सुणिवा सु(र) आवइ । . चउसठि जोगणि जासु नामि, नहु तणु (किणि?) संतावइ ।। जुगवर श्री 'जिणदत्तसूरि', महियलि जाणीजई। निर्मल मणि दीपंति भाल, 'जिणचंद' नमिज्जइ ॥१०॥ राजसभा छतीस वाद, कियउ जइ जइ कारो। - 'बबेरक' पद ठवण जासु, सुप्रसिद्ध अपारो । सहगुरु श्री जिनपत्तिसूरि', गाजइ अलवेसर । सूरि 'जिणेसर' 'जिणपबोह', 'जिणचंद' जईसर ।।११।। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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