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________________ २१४ ऐतिहासिक जैन काव्य-संग्रह साध्वी विद्या सिद्धि कृत ॥ गुरुणी गीतस् ॥ ---**- - ............ ....... करि आगली, सुमति गुपति भंडार ॥ प्र० ॥२॥ गोत्रज 'साउसखा' जाणियइ, 'करमचंद' साह मल्हार । ____भाव अधिक परिणामइ आदयों लीधउ संजम भार प्र०॥३॥ जणती (जाणीती ?) गछ माहे पहुतणी, क्रिया पात्र सुविचार । __ अहनिस जपतां नाम सुहामणउ, सुख संपति सुखकार ।४। प्र० श्री जिनसिंह सूरीसर' आपीयउ, “पहुतणी' पद सुविशाल । तप जप संजम रुडी परि राखती, जिम माता नइ बाल प्र०॥ साध्वी माहि सिरोमणि साध्वी, भणिय गुणिय सुजाण । . राति दिवस जे समरण करइ, प्रणमइ चतुर सुजाण । ६ । प्र० ।। 'सोलहसइ निआणू' बरस मई, 'भाद्रव बीज' अपार । . इम बोलइ 'विद्यासिद्धि' साध्वी, संपति हुवउ सुखकार ॥०॥७॥ (सं० १६६६ भा० ० ३ लि०) Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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